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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ


आह! यदि पशुपति को ज्ञात हो जाता कि मेरी निष्ठुरता ने इस सती के हृदय की कितनी कायापलट कर दी है तो क्या उसे अपने कृत्य पर पश्चाताप न होता, क्या वह अपने किये पर लज्जित न होता!

प्रभा ने उस युवक से इशारे में कहा– आज हम और तुम पूर्व वाले मैदान में मिलेगें और कोठे के नीचे उतर आई।

प्रभा के हृदय में इस समय एक वही उत्सुकता थी जिसमें प्रतिकार का आनन्द मिश्रित था। वह अपने कमरे में जाकर अपने चुने हुए आभूषण पहनने लगी। एक क्षण में वह एक फालसई रंग की रेशमी साड़ी पहने कमरे से निकली और बाहर जाना ही चाहती थी कि शान्ता ने पुकारा– अम्मा जी, आप कहाँ जा रहा हैं, मैं भी आपके साथ चलूँगी।

प्रभा ने झट बालिका को गोद में उठा लिया और उसे छाती से लगाते ही उसके विचारों ने पलटा खाया। उन बाल नेत्रों में उसके प्रति कितना असीम विश्वास, कितना सरल स्नेह, कितना पवित्र प्रेम झलक रहा था। उसे उस समय माता का कर्त्तव्य याद आया। क्या उसकी प्रेमाकांक्षा उसके वात्सल्य भाव को कुचल देगीं? क्या वह प्रतिकार की प्रबल इच्छा पर अपने मातृ-कर्त्तव्य को बलिदान कर देगी? क्या वह अपने क्षणिक सुख के लिए उस बालिका का भविष्य, उसका जीवन धूल में मिला देगी? प्रभा की आँखों से आँसू की दो बूंदें गिर पड़ी। उसने कहा– नहीं, कदापि नहीं, मैं अपनी प्यारी बच्ची के लिए सब कुछ सह सकती हूँ।

एक महीना गुज़र गया। प्रभा अपनी चिन्ताओं को भूल जाने की चेष्टा करती रहती थी, पर पशुपति नित्य किसी न किसी बहाने से कॄष्णा की चर्चा किया करता। कभी-कभी हँसकर कहता– प्रभा, अगर तुम्हारी अनुमति हो तो मैं कृष्णा से विवाह कर लूँ। प्रभा इसके जवाब में रोने के सिवा और क्या कर सकती थी?

आख़िर एक दिन पशुपति ने उसे विनयपूर्ण शब्दों में कहा-क्या कहूँ प्रभा, उस रमणी की छवि मेरी आँखों से नहीं उतरती। उसने मुझे कहीं का नहीं रक्खा। यह कहकर उसने कई बार अपना माथा ठोका। प्रभा का हृदय करुणा से द्रवित हो गया। उसकी दशा उस रोगी की-सी-थी जो यह जानता हो कि मौत उसके सिर पर खेल रही हैं, फिर भी उसकी जीवन-लालसा दिन-दिन बढती जाती हो। प्रभा इन सारी बातों पर भी अपने पति से प्रेम करती थी और स्त्री-सुलभ स्वभाव के अनुसार कोई बहाना खोजती थी कि उसके अपराधों को भूल जाय और उसे क्षमाकर दे।

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