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गुप्त धन-2 (कहानी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :467
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8464

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प्रेमचन्द की पच्चीस कहानियाँ

बन्द दरवाज़ा

सूरज क्षितिज की गोद से निकला, बच्चा पालने से– वही स्निग्धता, वही लाली, वही खुमार, वही रोशनी।

मैं बरामदे में बैठा था। बच्चे ने दरवाज़े से झांका। मैंने मुस्कराकर पुकारा। वह मेरी गोद में आकर बैठ गया।

उसकी शरारतें शुरू हो गयीं। कभी क़लम पर हाथ बढ़ाया, कभी काग़ज़ पर। मैंने गोद से उतार दिया। वह मेज का पाया पकड़े खड़ा रहा। घर में न गया। दरवाज़ा खुला हुआ था।

एक चिड़िया फुदकती हुई आयी और सामने के सहन में बैठ गयी। बच्चे के लिए मनोरंजन का यह नया सामान था। वह उसकी तरफ़ लपका। चिड़िया ज़रा भी न डरी। बच्चे ने समझा अब यह परदार खिलौना हाथ आ गया। बैठकर दोनों हाथों से चिड़िया को बुलाने लगा। चिड़िया उड़ गयी, निराश बच्चा रोने लगा। मगर अन्दर के दरवाज़े की तरफ़ ताका भी नहीं। दरवाज़ा खुला हुआ था।

गरम हलवे की मीठी पुकार आयी। बच्चे का चेहरा चाव से खिल उठा। खोंचेवाला सामने से गुज़रा। बच्चे ने मेरी तरफ़ याचना की आँखों से देखा। ज्यों-ज्यों खोंचेवाला दूर होता गया, याचना की आँखें रोष में परिवर्तित होती गयी। यहाँ तक कि जब मोड़ आ गया और खोंचेवाला आँख से ओझल हो गया तो रोष ने पुर ज़ोर फरियाद की सूरत अख्तियार की। मगर मैं बाज़ार की चीज़ें बच्चों को नहीं खाने देता। बच्चे की फरियाद ने मुझ पर कोई असर न किया। मैं आगे की बात सोचकर और भी तन गया। कह नहीं सकता बच्चे ने अपनी मां की अदालत में अपील करने की ज़रूरत समझी या नहीं। आम तौर पर बच्चे ऐसी हालतों में मां से अपील करते हैं। शायद उसने कुछ देर के लिए अपील मुल्तबी कर दी हो। उसने दरवाज़े की तरफ़ रूख न किया। दरवाज़ा खुला हुआ था।

मैंने आँसू पोंछने के ख़याल से अपना फाउण्टेनपेन उसके हाथ में रख दिया। बच्चे को जैसे सारे ज़माने की दौलत मिल गई। उसकी सारी इंद्रियां इस नई समस्या को हल करने में लग गई। एकाएक दरवाज़ा हवा से खुद-ब-खुद बन्द हो गया। पट की आवाज़ बच्चे के कानों में आई। उसने दरवाज़े की तरफ़ देखा। उसकी वह व्यस्तता तत्क्षण लुप्त हो गई। उसने फाउण्टेनपेन को फेंक दिया और रोता हुआ दरवाज़े की तरफ चला क्योंकि दरवाज़ा बन्द हो गया था।

– प्रेमचालीसा’ से
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