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कलम, तलवार और त्याग-2 (जीवनी-संग्रह)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :158
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8502

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महापुरुषों की जीवनियाँ


मौलाना ने इस पुस्तक में बताया है कि आर्य भाषाओं में जो सामान्य नियम हैं, सब उर्दू में मौजूद हैं। जैसे आर्य भाषाओं का एक नियम यह है कि दो से अधिक शब्द परस्पर मिलकर समास या संयुक्त पद बन जाते हैं। इसके उदाहरण में आपने उर्दू के बहुत से शब्द उपस्थित किए हैं। बताया है कि उपसर्ग (prefix) और प्रत्यय (suffix) के द्वारा शब्दनिर्माण भी अन्य भाषाओं की प्रकृति है। इसके प्रमाण में वह संपूर्ण उपसर्ग और प्रत्यय लिख दिये, जो हिन्दी, फ़ारसी, तुर्की आदि भाषाओं से उर्दू में लिये गए हैं। यह भी बताया है कि यह दोनों नियम अरबी और दूसरी सामी (सिमेटिक) भाषाओं में नहीं हैं। संयुक्त पद बनाने की जो विधियाँ उर्दू में काम में लायी जाती हैं, वे सब बतायी हैं, फिर सब प्रकार की परिभाषाएँ बनाने के सिद्धांत उदाहरण सहित समझाए हैं। इन सिद्धान्तों को सब अधिकारी विद्वानों ने समीचीन मान लिया है और उपर्युक्त अनुवाद विभाग में प्रायः उन्हीं के अनुसार पारिभाषिक शब्द बनाए जाते हैं।

सच यह है कि यह ग्रन्थ लिखकर मौलाना ने उर्दू भाषा का इतना बड़ा उपकार किया है, जिसका ऋण आनेवाली शताब्दियों तक चुकाया जाएगा। पारिभाषिक शब्द बनाने की पद्धति प्रस्तुत करके उर्दू भाषा के जीवित रहने का साधन जुटा दिया और अब निश्चय ही यह एक ज्ञान-विज्ञान-सम्पन्न भाषा बन जाएगी और इसमें जीवित रहने की योग्यता उत्पन्न हो जाएगी। मेरा तो विश्वास है कि इस पुस्तक ने मौलाना सलीम के नाम को अमर कर दिया।

उसमानिया यूनिवर्सिटी से सम्बन्ध
उस्मानिया यूनिवर्सिटी खुलने पर मौलाना उर्दू साहित्य के असिस्टेंस प्रोफ़ेसर के पद पर नियुक्त हुए प्रोफ़ेसर का पद इस विश्वविद्यालय में उन्हीं लोगों को दिया जाता है, जो यूरोप की डिग्री प्राप्त कर चुके हों, पर चार साल बाद मौलाना अपवाद रूप में प्रोफेसर बना दिए गए। उस समय आपकी अवस्था ५० साल के लगभग थी। तब से अन्तकाल तक इसी पद पर रहे।

पांडित्य
मौलाना ने अरबी के संपूर्ण पाठ्य विषय और ग्रन्थ पढ़े थे। फ़ारसी के उच्चतम कोटि के ग्रन्थ पढ़े और पढ़ाए थे। नवीन पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान उर्दू अनुवादों के द्वारा और अँगरेजी जानने वालों से पुस्तकें पढ़वाकर प्राप्त किया था। जब वह सर सैयद के साहित्यिक सहकारी नियुक्त हुए, तो सर सैयद पर उनकी सर्वज्ञता का सिक्का बैठ गया और मरते दम तक उन्हें अपने पास से अलग नहीं किया। यद्यपि उन्होंने उच्च अँगरेजी शिक्षा नहीं प्राप्त की थी, पर अँगरेज़ीदाँ से जब किसी विषय पर वार्तालाप होता था, तो उनको अक्सर लज्जित होना पड़ता था। प्रोफेसरी के ज़माने में भी वह उर्दू साहित्य की शिक्षा उसी नई प्रणाली से देते थे, जिस पर अँगरेजी साहित्य शिक्षा अवलंबित है।

कवित्व
मौलाना के आरंभिक जीवन वृत्तांत की खोज से मालूम हुआ है कि उन्हें शायरी का शौक १४ बरस की उम्र से था। आरंभ में उर्दू ग़ज़लें उसी ढंग से लिखीं, जैसी आमतौर से लिखी जाती हैं। लाहौर से शिक्षा प्राप्ति के समय उनके विचार बदले और उन्होंने बहुत सी इसलामी कविताएँ लिखीं। उस ज़माने में फ़ारसी और अरबी भाषाओं में भी बहुत से पद्य लिखे। इन दोनों भाषाओं में भी उनकी रचना प्रौढ़ समझी गई थी। सर सैयद के साहित्यिक सहकारी नियुक्त होने से पहले यह सिलसिला जारी रहा, पर इस पद पर पहुँचने के बाद से गद्यरचना की ओर अधिक झुकाव हो गया था। फिर भी उर्दू शायरी नहीं छूटी। जब तब दिल में उमंग उठती और हृदय में भरे हुए भाव पद्य रूप में बाहर आ जाते। यह रचनाएँ जिन मित्रों के हाथ लगीं, वह ले गये। उस समय की कविता अब उपलब्ध नहीं। हाँ, ‘मआरिफ़’, ‘ज़मींदार’, ‘मुसलिम गज़ट’ की फ़ाइलों में उसका कुछ अंश विद्यमान है, पर सब कल्पित नामों से प्रकाशित हैं। कितनी ही रचनाओं के अन्त में ‘एक लिबरल मुसलमान’ लिखा है।

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