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कर्मभूमि (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :658
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8511

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प्रेमचन्द्र का आधुनिक उपन्यास…


‘जिस दिन मुझे ख़बर मिली कि लाला समरकान्त की दुकान पर एक औरत ने दो गोरों को मार डाला और उस पर मुकदमा चल रहा है, तब मैं समझ गया कि वही है। उस दिन से हर पेशी में आता हूँ और सबके पीछे खड़ा रहता हूँ। किसी के से कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती। आज मैंने समझा, उससे सदा के लिए नाता टूट रहा है; इसलिए बच्चे को लेता आया कि इसके देखने की उसे लालसा न रह जाय। आप लोगों ने तो बहुत खरच-वरच किया, पर भाग्य में जो लिखा था, वह कैसे टलता। आपसे यही कहना है कि जज साहब फै़सला सुना चुकें, तो एक छिन के लिए उससे मेरी भेंट करा दीजिएगा। मैं आपसे सत्य कहता हूँ बाबूजी, वह अगर बरी हो जाय तो मैं उसके चरण धो-धोकर पीऊँ और घर ले जाकर उसकी पूजा करूँ। मेरे भाई-बन्द अब भी नाक-भौं सिकोड़ेंगे, पर जब आप लोगों जैसे बड़े-बड़े आदमी मेरे पक्ष में हैं, तो मुझे बिरादरी की परवाह नहीं।’

शान्तिकुमार ने पूछा– ‘जिस दिन उसका बयान हुआ, उस दिन तुम थे?’

युवक ने सजल नेत्र होकर कहा–‘हाँ, बाबूजी, था। सबके पीछे द्वार पर खड़े रो रहा था। यही जी में आता था कि दौड़कर चरणों से लिपट जाऊँ और कहूँ–मुन्नी, मैं तेरा सेवक हूँ, तू अब तक मेरी स्त्री थी आज से मेरी देवी है। मुन्नी ने मेरे पुरखों को तार दिया बाबूजी, और क्या कहूँ।’

शान्तिकुमार ने फिर पूछा–‘मान लो, आज वह छूट जाए, तो तुम उसे घर ले जाओगे?’

युवक ने पुलकित कण्ठ से कहा–‘यह पूछने की बात नहीं है बाबूजी। मैं उसे आँखों पर बैठाकर ले जाऊँगा और जब तक जीऊँगा, उसका दास बना रहकर अपना जन्म सफल करूँगा।’

एक क्षण के बाद उसने बड़ी उत्सुकता से पूछा– ‘क्या छूटने की कुछ आशा है बाबूजी?’

‘औरों को तो नहीं है, पर मुझे है।’

युवक डॉक्टर साहब के चरणों पर गिरकर रोने लगा। चारों ओर निराशा की बातें सुनने के बाद आज उसने आशा का शब्द सुना है और वह निधि पाकर उसके हृदय की समस्त भावनाएँ मानो मंगलगान कर रही हैं। और हर्ष के अतिरेक में मनुष्य क्या आँसुओं को संयत रख सकता है?

मोटर का हार्न सुनते ही दोनों ने कचहरी की तरफ़ देखा। जज साहब आ गये। जनता का वह अपार सागर चारों ओर से उमड़कर अदालत के कमरे के सामने जा पहुँचा। फिर भिखारिन लायी गयी। जनता ने उसे देखकर जयघोष किया। किसी-किसी ने पुष्प वर्षा भी की। वकील, बैरिस्टर, पुलिस कर्मचारी, अफसर सभी आ-आकर यथास्थान बैठ गये।

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