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उपन्यास >> कायाकल्प

कायाकल्प

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :778
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8516

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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....


राजा साहब अपनी टेक पर अड़ना जानते थे; किन्तु इस समय उनका दिल काँप उठा। वही प्राणी, जो दिन भर गालियाँ बकता था, प्रातःकाल कोई मिथ्या शब्द मुंह से नहीं निकलने देता। वही दूकानदार, जो दिन भर टेनी मारता है, प्रातःकाल ग्राहक से मेलजोल तक नहीं करता। शुभ मुहूर्त पर हमारी मनोवृत्तियाँ धार्मिक हो जाती हैं। राजा साहब कुछ नरम होकर बोले–मैं खुद नहीं चाहता कि मेरी तरफ़ से किसी पर अत्याचार किया जाए; लेकिन इसके साथ ही यह भी नहीं चाहता कि प्रजा मेरे सिर पर चढ़ जाए। इन लोगों को अगर कोई शिकायत थी, तो इन्हें आकर मुझसे कहना चाहिए था। अगर मैं न सुनता, तो इन्हें अख़्तियार था, जो चाहते करते; पर मुझसे न कहकर इन लोगों ने हेकड़ी करनी शुरू की, रात घोड़ों को घास नहीं दी और इस वक़्त भागे जाते हैं। मैं यह घोर अपमान नहीं सह सकता।

चक्रधर–आपने इन लोगों को अपने पास आने का अवसर कब दिया? आपके द्वारपाल इन्हें दूर से भगा देते थे। आपको मालूम है कि इन ग़रीबों को एक सप्ताह से भोजन नहीं मिला?

राजा–एक सप्ताह से भोजन नहीं मिला!  यह आप क्या कहते हैं? मैंने सख़्त ताक़ीद कर दी थी कि हर मज़दूर को इच्छा पूर्ण भोजन दिया जाए। क्यों दीवान साहब, क्या बात है?

हरिसेवक–धर्मावतार, आप इन महाशय की बातों में न आइए। यह सारी आग इन्हीं की लगाई हुई है। राजा को बहकाना और भड़काना इन लोगों ने अपना धर्म बना रखा है। यहाँ से हर एक आदमी को दोनों वक़्त भोजन दिया जाता था।

मुंशी–दीनबन्धु, यह लड़का बिलकुल नासमझ है। दूसरों ने जो कुछ कह दिया उसे सच समझ लेता है। तुमसे किसने कहा बेटा कि आदमियों को भोजन नहीं मिला था? भण्डारी तो मैं हूँ, मेरे सामने जिंस तौली जाती थी। मैं पूछ-पूछकर देता था। बारातियों को भी कोई इतनी खातिर न करता होगा। इतनी बात भी न जानता, तो तहसीलदारी क्या ख़ाक करता?

राजा–मैं इसकी पूछताछ करूँगा।

हरिसेवक–हुज़ूर, इन्हीं लोगों ने आदमियों को उभारकर सरकश बना दिया है। ये लोग सबसे कहते फिरते हैं कि ईश्वर ने मनुष्यों को बराबर बनाया है, किसी को तुम्हारे ऊपर राज्य करने का अधिकार नहीं है, किसी को तुमसे बेगार लेने का अधिकार नहीं। प्रजा ऐसी बातें सुन-सुनकर शेर हो गई है।

राजा–इन बातों में तो मुझे बुराई नहीं नज़र आती। मैं खुद प्रजा से यही बातें कहना चाहता हूँ।

हरिसेवक–हुज़ूर, ये लोग कहते हैं, ज़मीन के मालिक तुम हो। जो ज़मीन से बीज उगाए, वही उसका मालिक है। राजा तो तुम्हारा गुलाम है।

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