उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
राजा–हुज़ूर, मैं इनके साथ कोई सख्ती नहीं करना चाहता, केवल यह प्रतिज्ञा लिखाना चाहता हूँ कि यह अथवा इनके सहकारी लोग मेरी रियासत में न आयें।
चक्रधर–मैं ऐसी प्रतिज्ञा नहीं कर सकता। दीनों पर अत्याचार होते देखकर दूर खड़े रहना वह दशा है, जो हम किसी तरह नहीं सह सकते। अभी बहुत दिन नहीं गुज़रे कि राजा साहब के विचार मेरे विचारों से पूरे-पूरे मिलते थे। उन्हें अपने विचारों को बदलने के नए कारण हो गए हों, मेरे लिए कोई कारण नहीं।
राजा–मेरे प्रजा-हित के विचारों में कोई अन्तर नहीं हुआ है, मैं अब भी प्रजा का सेवक हूँ, लेकिन आप उन्हें राजनीतिक यन्त्र बनाना चाहते हैं, और इसी उद्देश्य से आप उनके हितचिन्तक बनते हैं। मैं उन्हें राजनीति में नहीं डालना चाहता। आप उनके आत्मसम्मान की रक्षा करते हैं और मैं उनके प्राणों की। बस, आपके और मेरे विचारों में केवल यह अन्तर है।
मिस्टर जिम ने सब-इन्स्पेक्टर से कहा–इनको हवालात में रखें, कल इजलास पर पेश करो।
वज्रधर ने आगे बढ़कर जिम के पैरों पर पगड़ी रख दी और बोले–हुज़ूर यह गुलाम का लड़का है। हुज़ूर, इसकी जाँ-बख्शी करें। हुजू़र का पुराना गुलाम हूँ। जब खुरजे का तहसीलदार था, तब हुज़ूर से सनद अता फ़रमायी थी, हुज़ूर!
मिस्टर जिम–ओ। तहसीलदार साहब, यह तुम्हारा लड़का है? तुमने घर से निकाल क्यों नहीं दिया? सरकार तुम्हें इसलिए पेंशन नहीं देता कि तुम बागियों को पालो। हम तुम्हारा पेंशन बन्द कर देगा। पेंशन इसलिए दिया जाता है तुम सरकार का वफ़ादार नौकर बना रहे।
वज्रधर–हुज़ूर मेरे मालिक हैं। आज इसका कुसूर माफ़ कर दिया जाये। आज से मैं इसे घर से निकलने ही न दूँगा।
चक्रधर ने पिता को तिरस्कार भाव से देखकर कहा–आप क्यों ऐसी बातों से मुझे लज्जित करते हैं! मिस्टर जिम और राजा साहब मुझे जेल के बाहर भी कैद़ करना चाहते हैं। मेरे लिए ज़ेल की क़ैद इस क़ैद से कहीं आसान है।
वज्रधर–बेटा, मैं अब थोड़े दिनों का मेहमान हूँ। मुझे मर जाने दो फिर तुम्हारे जी में जो आये, करना। मैं मना करने न आऊँगा।
हरिसेवक–तहसीलदार साहब, आप व्यर्थ हैरान हैं। आपका काम समझा देना है। वह समझदार हैं। अपना भला-बुरा समझ सकते हैं। जब वह खुद आग में कूद रहे हैं, तो आप कब तक उन्हें रोकिएगा?
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