उपन्यास >> कायाकल्प कायाकल्पप्रेमचन्द
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राजकुमार और रानी देवप्रिया का कायाकल्प....
वज्रधर–मेरी यह अर्ज़ है हुज़ूर, कि मेरी पेंशन पर रेप न आये।
जिम–तुमको इस मुकद्दमें में शहादत देना होगा। तुमने अच्छा शहादत दिया, तो तुम्हारा पेंशन बहाल रखा जायेगा।
चक्रधर–लीजिए, आपकी पेंशन बहाल हो गई, केवल मेरे विरुद्ध गवाही भर दे दीजिएगा।
राजा–बाबू चक्रधर, अभी कुछ नहीं बिगड़ा है। आप प्रतिज्ञा लिखकर शौक़ से घर जा सकते हैं। मैं आपको तंग नहीं करना चाहता। हाँ, इतना ही चाहता हूँ कि ऐसे हंगामे न खड़े हों।
चक्रधर–राजा साहब, क्षमा कीजिएगा, जब तक असन्तोष के कारण दूर न होंगे, ऐसी दुर्घटनाएँ होंगी और फिर होंगी। मुझे आप पकड़ सकते हैं, क़ैद कर सकते हैं। इससे चाहे आपको शान्ति हो, पर असन्तोष अणुमात्र भी कम न होगा, जिससे प्रजा का जीवन असह्य हो गया है। असन्तोष को भड़काकर आप प्रजा को शान्त नहीं कर सकते। हाँ, कायर बना सकते हैं। अगर आप उन्हें कर्महीन, बुद्धिहीन, पुरुषार्थहीन मनुष्य का तन धारण करने वाले सियार और सुअर बनाना चाहते हैं तो बनाइए, पर इससे न आपकी कीर्ति होगी, न ईश्वर प्रसन्न होंगे और न स्वयं आपकी आत्मा ही तुष्ट होगी।
१५
राजाओं-महाराजाओं को क्रोध आता है, तो उनके सामने जाने की हिम्मत नहीं पड़ती। जाने क्या ग़ज़ब हो जाए, क्या आफ़त आ जाये। विशालसिंह किसी को फाँसी न दे सकते थे, यहाँ तक कि कानून की रूह से वह किसी को गालियाँ भी न दे सकते थे। कानून उनके लिए भी था, वह भी सरकार की प्रजा थे; किन्तु नौकरी तो छीन सकते थे, इतना अख़्तियार क्या थोड़ा है? सारी रात गुज़र गई, पर राजा साहब अपने कमरे से बाहर नहीं निकले। उनकी पलकें तक न झपकी थीं। आधी रात तक तो उनकी तलवार हरिसेवक पर खिंची रही; इसी बुड्ढे खूसट के कुप्रबन्ध ने यह सारा तूफ़ान खड़ा किया। उसके बाद तलवार के वार अपने ऊपर होने लगे। मुझे इस उत्सव की ज़रूरत ही क्या थी? रियासत मुझे मिल ही चुकी थी। टीके-तिलक की हिमाक़त में क्यों पड़ा? पिछले पहर क्रोध ने फिर पहलू बदला और तलवार की चोटें चक्रधर पर पड़ने लगीं। यह सारी शरारत इसी लौंडे की है। न्याय, धर्म और परोपकार–सब बहुत अच्छी बातें हैं; लेकिन हर काम के लिए एक अवसर होता है। इसने प्रजा में असन्तोष की आग भड़कायी। दो-चार दिन आधे ही पेट खाकर रह जाते, तो क्या मज़दूरों की जान निकल जाती? अपने घर ही पर उन्हें कौन दोनों वक़्त पकवान मिलता है। जब बारहों मास एक वक़्त आधे पेट खाकर रहे हैं, तो यहाँ रसद के लिए दंगा कर बैठना साफ़ बतला रहा है कि यह दूसरों का मंत्र था। बाप तो तलुवे सहलाता फिरता है और आप परोपकारी बने फिरते हैं। पाँच साल तक चक्की न पिसवायी, तो नाम नहीं!
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