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मनोरमा (उपन्यास)

प्रेमचन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2014
पृष्ठ :283
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 8534

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‘मनोरमा’ प्रेमचंद का सामाजिक उपन्यास है।


हुक्म मिलने की देर थी। कर्मचारियों के हाथ तो खुजला रहे थे। वसूली का हुक्म पाते ही बाग-बाग हो गये। फिर तो वह अन्धेर मचा कि सारे इलाके में कुहराम पड़ गया। चारों तरफ लूट-खसोट हो रही थी। गालियाँ और ठोक-पीट तो साधारण बात थी, किसी के बैल खोल लिए जाते थे, किसी की गाय छीन ली जाती थी, कितनों ही के खेत कटवा लिये गये। बेदखली और इजाफे की धमकियां दी जाती थीं। जिसने खुशी से दिये, उसका तो १॰रु, ही में गला छूटा। जिसने हीले-हवाले किये, कानून बघारा, उसे १॰रु, के बदले २॰ रु, ४॰रु, देने पड़े। आखिर विवश होकर एक दिन चक्रधर ने राजा साहब से शिकायत कर ही दी।

राजा साहब ने त्योरी बदलकर कहा– मेरे पास तो आज तक कोई असामी शिकायत करने नहीं आया। आप उनकी तरफ से क्यों वकालत कर रहे हैं?

चक्रधर– उन्हें आपसे शिकायत करने को क्योंकर साहस हो सकता है।

राजा– यह मैं नहीं मानता। जिसको किसी बात की अखर होती है वह चुप नहीं बैठा रहता।

चक्रधर– तो आपसे कोई आशा न रखूं?

राजा– मैं अपने कर्मचारियों से अलग कुछ नहीं हूं।

चक्रधर ने इसका और कुछ जवाब न दिया। मुंशीजी राजभवन में इन्हें देखकर बोले-तुम यहां क्या करने आये थे? अपने लिए कुछ नहीं कहा?

चक्रधर– अपने लिए क्या कहता? सुनता हूं, रियासत में बड़ा अंधेर मचा हुआ है।

वज्रधर-यह सब तुम्हारे आदमियों की शरारत है। तुम्हारी समिति के आदमी जा-जाकर असामियों को भड़काते रहते हैं।

चक्रधर– हम लोग तो केवल इतना ही चाहते हैं कि असामियों पर सख्ती न की जाय और आप लोगों ने इसका वादा भी किया था, फिर यह मार-धा़ड़ क्यों हो रही है?

वज्रधर-इसीलिए कि असामियों से कह दिया गया है कि राजा साहब किसी पर जब्र नहीं करना चाहते। जिसकी खुशी हो दे, जिसकी खुशी हो न दे। तुम अपने आदमियों को बुला लो. फिर देखो कितनी आसानी से काम हो जाता है। तुम आज ही अपने आदमियों को बुला लो। रियासत के सिपाही उनसे बेतरह बिगड़े हुए हैं। ऐसा न हो कि मारपीट हो जाय।

चक्रधर यहां से अपने आदमियों को बुला लेने का वादा करने तो चले लेकिन दिल में आगा-पीछा हो रहा था। कुछ समझ में न आता था कि क्या करना चाहिए।

इसी सोच में पड़े हुए मनोरमा के यहां चले गये।

मनोरमा उन्हें उदास देखकर बोली-आप बहुत चिन्तित-से मालूम होते हैं? घर में तो सब कुशल है?

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