उपन्यास >> मनोरमा (उपन्यास) मनोरमा (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘मनोरमा’ प्रेमचंद का सामाजिक उपन्यास है।
वज्रधर ने इतने दिनों तक यों तहसीलदारी न की थी। ताड़ गये कि अबकी निशाना ठीक पड़ा है। बेपरवाई से बोले– मुझे क्या गरज पड़ी है कि किसी के लिए झूठ बोलूं। जो आंखों से देख रहा हूं, वही कहूंगा। रोयेंगी, रोयें; रोना तो उसकी तकदीर ही में लिखा है। जब से तुम आये हो, एक घूंट पानी तक मुंह में नहीं डाला। इसी तरह दो-चार दिन और रहीं, तो प्राण निकल जायेंगे।
चक्रधर करुणा से विह्वल हो गये। बिना कुछ कहे हुए मुंशीजी के साथ दफ्तर की ओर चले। मुंशीजी के चेहरे पर झुर्रियां एक क्षण के लिए मिट गयीं। चक्रधर को गले लगाकर बोले– जीते रहो बेटा, तुमने मेरी बात मान ली। इससे बढ़कर और क्या खुशी की बात होगी।
दोनों आदमी दफ्तर में आये, तो जेलर ने कहा– क्या आप इकरार-नामा लिख रहे हैं? निकल गयी सारी शेखी! इसी पर इतनी दूने की लेते थे।
चक्रधर पर घड़ों पानी पड़ गया। मन की अस्थिरता पर लज्जित हो गये। जाति-सेवकों से सभी दृढ़ता की आशा रखते हैं, सभी उसे आदर्श पर बलिदान होते देखना चाहते हैं। जातीयता के क्षेत्र में आते ही उसके गुणों की परीक्षा अत्यन्त कठोर नियमों से होने लगती है और दोषों की सूक्ष्म नियमों से। परले सिरे का कुचरित्र मनुष्य भी साधुवेश रखने वालों से ऊंचे आदर्श पर चलने की आशा रखता है; और उन्हें आदर्श से गिरते देखकर उनका तिरस्कार करने में आशा रखता है, और उन्हें आदर्श से गिरते देखकर जेलर द्वारा कही हुई बातों ने चक्रधर आंखें खोल दीं। तुरन्त उत्तर दिया– मैं जरा वह प्रतिज्ञा-पत्र देखना चाहता हूं।
चक्रधर ने कागज को सरसरी तौर से देखर कहा– इसमें तो मेरे लिए कोई जगह ही नहीं रही। घर पर कैदी ही बना रहूंगा। जब कैद ही होना है, तो कैदखाना क्या बुरा है? अब या तो अदालत से बरी होकर आऊंगा, या सजा के दिन काटकर।
यह कह चक्रधर अपनी कोठरी में चले आये।
एक सप्ताह के बाद मिस्टर जिम के इजलास में मुकदमा चलने लगा।
अदालत में रोज खासी भीड़ हो जाती। वे सब मजदूर, जिन्होंने हड़ताल की थी, एकबार चक्रधर के दर्शनों को आ जाते। शहर में हजारों आदमी आ पहुंचते थे। कभी-कभी राजा विशालसिंह भी आकर दर्शकों की गैलरी में बैठ जाते। लेकिन और कोई आये न आये, किन्तु मनोरमा रोज ठीक दस बजे कचहरी में आ जाती और अदालत के उठने तक अपनी जगह पर मूर्ति की भांति बैठी रहती। उसके मुख पर दृढ़ संकल्प, विशाल करुणा, अलौकिक धैर्य और गहरी चिन्ता का फीका रंग छाया हुआ था।
सन्ध्या का समय था। आज पूरे १५ दिनों की कार्रवाई के बाद मिस्टर जिम ने दो साल की कैद का फैसला सुनाया था। यह कम-से-कम सजा थी, जो उस धारा के अनुसार दी जा सकती थी।
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