उपन्यास >> मनोरमा (उपन्यास) मनोरमा (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘मनोरमा’ प्रेमचंद का सामाजिक उपन्यास है।
जिम– खुदा के जानने से कुछ नहीं होगा; तुमको जानना चाहिए। यह आदमी कैदियों से मजहब की बातचीत तो नहीं करता।
दारोगा– मजहब की बातें तो बहुत करता है हुजूर!
जिम– ओह! तब तो यह बहुत ही खतरनाक आदमी है। जब कोई पढ़ा-लिखा आदमी मजहब की बातचीत करे, तो फौरन समझ लो कि वह कोई साजिश करना चाहता है। Religion (धर्म) के साथ Politics (राजनीति) बहुत खतरनाक हो जाता है। यह आदमी कैदियों से बड़ी हमदर्दी करता होगा सरकारी हुक्म को खूब मानता होगा कड़े-से-कड़ा काम खुशी से करता होगा?
दारोगा– जी हां,
जिम– ऐसा आदमी निहायत खौफनाक होता है उस पर कभी एतबार नहीं करना चाहिए। हम इस पर मुकदमा चलायेगा। इसको बहुत कड़ी सजा देगा। सिपाहियों को दफ्तर में बुलाओ। हम सबका बयान लिखेगा।
दारोगा– हुजूर, पहले उसे डॉक्टर साहब को दिखालूं। ऐसा न हो कि मर जाय, गुलाम को दाग लगे।
जिम– वह मरेगा नहीं। ऐसा खौफनाक आदमी कभी नहीं मरता; और मर भी जाएगा, तो हमारा कोई नुकसान नहीं।
यह कहकर साहब दफ्तर की ओर चले। धन्नासिंह अब तक इस इन्तजार में खड़ा था कि डाक्टर साहब आते होंगे। जब देखा कि जिम साहब इधर मुखातिब भी न हुए, तो उसने चक्रधर को गोद में उठाया और अस्पताल की ओर चला।
चक्रधर दो महीने अस्पताल में पड़े रहे। दवा-दर्पन तो जैसी हुई वही जानते होंगे; लेकिन जनता की दुआओं में जरूर असर था। हजारों आदमी नित्य उनके लिए ईश्वर से प्रार्थना करते थे और मनोरमा को तो दान, व्रत और तप के सिवा और कोई काम न था। जिन बातों को वह पहले ढकोसला समझती थी, उन्हीं बातों में अब उसकी आत्मा को शान्ति मिलती थी। कमजोरी ही में हम लकड़ी का सहारा लेते हैं।
चक्रधर तो अस्पताल में पड़े थे, इधर उन पर नया अभियोग चलाने की तैयारियां हो रही थीं। ज्योंही वह चलने-फिरने लगे, उन पर मुकदमा चलने लगा। जेल के भीतर ही इजलास होने लगा। ठाकुर गुरु हरसेवकसिंह आजकल डिप्टी मजिस्ट्रेट थे। उन्हीं को यह मुकदमा सुपुर्द किया गया।
ठाकुर साहब सरकारी काम में जरा भी रू-रिआयत न करते थे, लेकिन यह मुकद्दमा पाकर वह धर्म-संकट में पड़ गये। अगर चक्रधर को सजा देते हैं, तो जनता में मुंह दिखाने लायक नहीं रहते। मनोरमा तो शायद उनका मुंह भी न देखे। छोड़ते हैं, तो अपने समाज में तिरस्कार होता है, क्योंकि वहां सभी चक्रधर से खार खाये बैठे थे। मुकदमें को पेश हुए आज तीसरा दिन था। गुरु हरसेवक बरामदे में बैठे सावन की रिम-जिम वर्षा का आनंद उठा रहे थे। सहसा मनोरमा मोटर से उतरकर उनके समीप ही कुरसी पर बैठ गयी।
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