उपन्यास >> मनोरमा (उपन्यास) मनोरमा (उपन्यास)प्रेमचन्द
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‘मनोरमा’ प्रेमचंद का सामाजिक उपन्यास है।
मनोरमा– तो न छोड़िए, आपको कोई मजबूर नहीं करता। आपको अपना धर्म प्यारा है और होना भी चाहिए। उन्हें भी अपना सम्मान प्यारा है और होना चाहिए। मैं जैसे आपको बहू के हाथ का भोजन ग्रहण करने को मजबूर नहीं कर सकती, उस भांति उन्हें भी यह अपमान सहने के लिए नहीं दबा सकती। आप जानें और वह जानें, मुझे बीच में न डालिए।
मुंशीजी बड़ी आशा बांधकर यहां दौड़े आये थे। यह फैसला सुना तो कमर टूट-सी गयी। फर्श पर बैठ गये और अनाथ-भाव से माथे पर हाथ रखकर सोचने लगे-अब क्या करुं?
मनोरमा वहां से चली गयी। अभी उसे अपने लिए कोई स्थान ठीक करना था, शहर से अपनी आवश्यक वस्तुएं मंगवानी थीं।
रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी, पर मनोरमा की आंखों में नींद न आयी थी। उसे ख्याल आया कि चक्रधर बिलकुल खाली हाथ हैं। पत्नी साथ, खाली हाथ, नयी जगह, न किसी से रस्म, संकोची प्रकृति, उदारहृदय, उन्हें प्रयाग में कितना कष्ट होगा? मैंने बड़ी भूल की। मुंशी के साथ मुझे चली जाना चाहिए था। बाबूजी मेरा इन्तज़ार कर रहे होंगे।
उसने घड़ी की ओर देखा। एक बज गया था। उसके मन में प्रश्न उठा-क्यों न इसी वक्त चलूं? घण्टे-भर में पहुंच जाऊंगी।
लेकिन फिर ख्याल आया, इस वक्त जाऊंगी तो लोग क्या कहेंगे-वह फिर आकर लेट रही और सो जाने की चेष्टा करने लगी। उसे नींद आ गयी लेकिन देर से सोकर भी मनोरमा को उठने में देर नहीं लगी। अभी सब लोग सोते ही थे। कि वह उठ बैठी और तुरंत मोटर तैयार करने का हुक्म दिया। फिर अपने हैंडबैग में कुछ चीजें उठाकर रवाना हो गयी।
चक्रधर भी प्रात:काल उठे और चलने की तैयारी करने लगे। उन्हें माता-पिता को छोड़कर जाने का दु:ख हो रहा था, पर उस घर में अहल्या की जो दशा थी, वह उनके लिए असह्य थी। गाड़ी सात बजे छूटती थी। वह अपना बिस्तर और पुस्तकें बाहर निकाल रहे थे। भीतर अहल्या अपनी सास और ननद के गले मिलकर रो रही थी, कि इतने में मनोरमा की मोटर आती हुई दिखाई दी। चक्रधर मारे शर्म के गड़ गये।
मनोरमा ने मोटर से उतरते हुए कहा– बाबूजी, अभी जरा ठहर जाइए। यह उतावली क्यों? जब तक मुझे मालूम न हो जायेगा कि आप किस कारण से और वहां क्या करने के इरादे से जाते हैं, मैं आपको न जाने दूंगी।
चक्रधर– आपको सारी स्थिति मालूम होती, तो आप कभी मुझे रोकने की चेष्टा न करतीं।
मनोरमा– तो सुनिये, मुझे आपके घर की दशा थोड़ी-बहुत मालूम है। ये लोग अपने संस्कारों से मजबूर हैं। न तो आप ही उन्हें दबाना पसंद करेंगे। क्यों न अहल्या को कुछ दिनों के लिए मेरे साथ रहने दें? मैंने जगदीशपुर में ही रहने का निश्चय किया है। आप वहां रह सकते हैं। मेरी बहुत दिनों से इच्छा है कि कुछ दिन आप मेरे मेहमान हों। वह भी तो आप ही का घर है। मैं इसे अपना सौभाग्य समझूंगी।
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