उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘मैंने कह दिया, ‘पिताजी को इनकी सहायता करनी चाहिये।’
‘‘माताजी ने वह पत्र अपने पास रख लिया। उस समय मैंने आपको लिखा था कि निर्बल के बल राम। ऐसा प्रतीत होता है कि माताजी ने पिताजी से बात की थी। मेरे लखनऊ आने से एक दिन पूर्व पिताजी ने मुझसे पूछा–‘किस प्रकार की सहायता आपके लिये उपयुक्त होगी’
‘‘मैंने कह दिया कि आपसे पूछा नहीं है। मेरा तो यह कहना है कि एक योग्य विद्यार्थी धनाभाव के कारण पढ़ने से रह जाये, तो यह पाप हो जायेगा।
‘‘इस पर पिताजी ने पूर्ण परिवार के सामने यह प्रस्ताव रख दिया कि आपको इन दोनों कमरों में से कौन-सा कमरा रहने को दिया जाये। यह निश्चय हुआ कि जो आपको पसन्द हो, वही दे दिया जाये। एक में रहने की सुविधा अधिक है, परन्तु वह एकान्त नहीं। दूसरे में कुछ असुविधा रहेगी, परन्तु शान्ति और एकान्त रहेगा।
‘‘बाहर वाले कमरे के बाहर पिताजी के ग्राहक प्रायः बैठे रहते हैं। उनका शोर रहता है। यहाँ घर से और ग्राहकों से भी पृथक् स्थान होगा।
‘‘मैंने तो अपने लिये यह साथ वाला कमरा लिया हुआ है।’’
‘‘कौन-सा?’’
‘‘यह।’’ रजनी ने बिलकुल साथ वाला कमरा दिखा दिया।
‘‘ठीक है रजनी बहन! मेरे लिये तो दोनों ही ठीक हैं। मैं यह विचार कर रहा था कि आपके माता-पिता, भैया-भाभी को कष्ट होगा?’’
‘‘नहीं; सबसे इस प्रबन्ध को स्वीकार कर लिया है। माताजी ने तो आते समय मुझको आपके प्रवेश-शुल्क के लिये भी रुपये दिये हैं।’’
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