उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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अगले दिन इन्द्रनारायण अभी स्नानादि से निवृत्त ही हुआ था कि महादेव उससे मिलने आ गया। महादेव ने बताया कि उसके कॉलेज में प्रवेश लेने के लिये उसकी नानी ने रुपये भेजे हैं।
इन्द्र ने इस पर बता दिया कि वह घर से सात सौ रुपये ले आया है और अब उसको आवश्यकता नहीं, परन्तु महादेव के समझाने पर उसने ले लिये। महादेव के जाने पर वह सीधा डाकखाने में चला गया और खाता खोल नानी के पाँच सौ और अपने पिताजी से लिये रुपयों में से दो सौ रुपये जमा कर दिये। पश्चात् वापस होटल में जाकर, अपना सामान बाँध, इक्के पर रख, रमेशचन्द्र सिन्हा की कोठी पर जा पहुँचा। रजनी उत्सुकता से उसकी प्रतीक्षा कर रही थी।
अगले दिन वे कॉलेज में प्रवेश-शुल्क तथा छः मास का शिक्षा-शुल्क देकर भरती हो गये।
उसी सायंकाल वह अपने नाना-नानी से मिलने तथा उनसे मिले रुपये के लिये उनका धन्यवाद करने गणेशगंज में उनके घर जा पहुँचा।
विष्णु अपने पिता के पास बैठा अपने पुनः कॉलेज में प्रवेश पा जाने की बात बता रहा था। वह कह रहा था, ‘‘मुझको सौ रुपये मासिक से अधिक की आवश्यकता रहेगी।’’
‘‘क्या करते हो इतने रुपयों से?’’
‘‘पिताजी! आज जूते लिये हैं। पच्चीस रुपये के तो वे ही आये हैं। दो नैक्टाई दस रुपये की आयी हैं। एक हैट खरीदा है, दो जोड़े मोजे और आधी दर्जन रूमाल लिये हैं। अगले महीने सूट सिलवाना पड़ेगा। फिर पुस्तकें, कापियों आदि का बहुत खर्चा हो जायेगा।’’
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