उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
|
410 पाठक हैं |
संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘अच्छा, कितना और चाहते हो?’’
‘‘कम-से-कम सवा सौ रुपये मासिक कर दीजिये।’’
‘‘अच्छी बात है, मिल जायेगा।’’
इस समय इन्द्रनारायण वहाँ पहुँचा। उसे देख शिवदत्त ने गम्भीर हो कहा, ‘‘आओ इन्द्र! कैसे आये हो?’’
इन्द्र ने चरण छूकर प्रणाम किया और सामने बैठते हुए बोला–‘‘मैं मेडिकल कॉलेज में दाखिल हो गया हूँ। आपका आशीर्वाद लेने आया हूँ।’’
‘‘अच्छी बात है। खर्चा बहुत है उस कॉलेज का। बहुत कंजूसी से काम करोगे तो नौका पार लग जायेगी। कितना वजीफा मिलेगा तुमको?’’
‘‘पच्चीस रुपये मासिक। वह तो अभी तीन महीने बाद से मिलने लगेगा। पहले प्रिन्सिपल लिखकर भेजेंगे कि मैं उनके कॉलेज में भरती हो गया हूँ। उनका पत्र यूनिवर्सिटी में जायेगा। वहाँ स्वीकृति होगी। तत्पश्चात् बिल बनेगा। फिर बिल पास होगा। तदनन्तर चैक बनेगा। वह बैंक से तुड़ाया जायेगा, फिर हम छात्रवृत्ति पाने वालों को मिलेगा।
‘‘अभी तो आपके भेजे रुपये से काम चलेगा।’’
‘‘मेरे भेजे से? क्या मतलब?’’
‘‘कल मामाजी पाँच सौ रुपये दे गये थे। उनका कहना था कि अभी इतने में ही काम चलाओ। शेष फिर भेज जिया जायेगा।’’
|