उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘महादेव ने कहा था कि रुपया मैंने भेजा है?’’
‘‘जी नहीं, मामाजी ने तो कहा था कि नानीजी ने भेजा है।’’
‘‘ओह!’’ शिवदत्त भौचक्का हो विचार करता रह गया। इसके पश्चात् उसने बात बदल दी। उसने कहा, ‘‘बोर्डिंग हाउस में रहोगे क्या?’’
‘‘जी नहीं। उसके लिये मेरे पास खर्चा नहीं है। एक सहपाठी के घर रहने का प्रबन्ध हो गया है। भोजन भी वही से मिल जायेगा।’’
‘‘तब तो मजा है। आखिर पुरोहित जी के लड़के हो। दान-दक्षिणा, श्राद्ध-तर्पण लेने का स्वभाव तो है ही। यह बात एक अफसर का लड़का नहीं कर सकता। देखो, विष्णु पर दो सौ रुपये मासिक के लगभग व्यय होना है।’’
इस समय विष्णु की माँ आ गयी। उसने इन्द्र से दुरैया में बच्चों का, सौभाग्यवती और उसके पति का स्वास्थ्य-समाचार पूछा, तत्पश्चात् उसने भी इन्द्रनारायण से उसके प्रवेश पा जाने इत्यादि के विषय में वृत्तान्त जाना।
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