लोगों की राय

उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


जिस दिन रामाधार आदि वहाँ आये हुए थे, उर्मिला ने भी उस दिन का झगड़ा सुना और समझा था। वह जान गयी थी कि इन्द्र की पढ़ाई में आर्थिक कठिनाई बाधक होगी। अतः उसने अपने मन में निश्चय कर लिया कि वह उसकी सहायता करेगी।

इस पर भी वह अपने पति महादेव को बताना नहीं चाहती थी। अतः उसने माँ के नाम से रुपये दिये। वह जानती थी कि अपने रुपये बतायेगी तो उसका पति लेने से इन्कार कर देगा।

जब रुपये पहुँच गये तो अगले ही दिन भेद खुल गया। महादेव को अपनी पत्नी की युक्ति ठीक प्रतीत हुई थी, इससे वह चुप कर रहा।

अब जब पिताजी की आवाज आ गयी और उन्होंने पूछा कि वह रुपये देकर आया है तो उसने स्वीकार कर लिया। इस पर पिता ने पुनः पूछा–‘‘क्यों? जब मैंने उसकी सहायता करने से न कर दी थी तो तुमने क्यों की?’’

‘‘मैंने नहीं की, यह उर्मिला ने की है। उसने अपने पॉकेट-खर्च में से जमा किये ये रुपये दिये थे।’’

‘‘उसने अपने पास से दिये हैं? भला क्यों?’’

‘‘मैं नहीं जानता, आप उससे पूछ लीजिये।’’

शिवदत्त अपनी पतोहू को डाँट नहीं सकता था। वह जानता था कि महादेव अच्छा जीवन व्यतीत नहीं कर रहा। क्लब में उसके विषय में कई कहानियाँ विख्यात हो रही थीं और वह देख रहा था कि उर्मिला दिन-प्रतिदिन साध्वी-सा जीवन व्यतीत कर रही है। इस पर भी वह चाहता था कि घर में एक ही नीति चले। इस कारण उसने महादेव को कह दिया, ‘‘जरा उसको बुलाओ। मैं यह पसन्द नहीं करता।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book