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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


जब उसके मन में यह बात स्पष्ट हो गयी कि ऐना के पिता की शर्त मानना ठीक नहीं और न ही माना जाना सम्भव है तो वह अपने विषय में विचार करने लगा। उसने निश्चय कर लिया कि वह वापस लखनऊ जायेगा। परन्तु उसके पास तो धन समाप्त हो रहा था। उसने अपना पर्स देखा तो केवल दस-बारह रुपये निकले। इससे अधिक तो उसको होटल का बिल देना था। अतः उसने पिता को तार दे दिया कि उसको एपोलो होटल के पते पर रुपया भेज दिया जाये। अगले दिन जब रुपया आया तो वह होटल का बिल दे, टिकट ले लखनऊ जा पहुँचा।

उसी दिन विलियम और ऐना पुनः विष्णु से मिलने के लिये एपोलो होटल में आये। यह जान विलियम को बहुत निराशा हुई कि विष्णु होटल का बिल देकर चला गया है।

ऐना और उसका पिता भी लखनऊ लौट आये। ऐना ने पुनः कॉलेज में प्रवेश लेने से इन्कार कर दिया। इस पर उसके पिता ने उसको तीन मास की ट्रेनिंग दिलवाकर टेलीफोन-ऑपरेटर लगवा दिया।

समय व्यतीत होने लगा। ऐना ने विष्णु से किसी प्रकार का सम्पर्क नहीं रखा था। उसके विवाह करने के लिये कई युवक उससे बातचीत कर चुके थे, परन्तु जब भी वह अपने पिता से उनके विषय में पूछती, वह कह देता था कि यदि हिन्दुस्तानी युवक से विवाह करना है तो इतना रुपया अपने नाम करा लो, नहीं तो मैं तुम्हारा विवाह स्वीकार नहीं होने दूँगा।

‘‘यदि मैं विवाह इक्कीस वर्ष के पश्चात् करूँ तो?’’ ऐना ने पूछ लिया।

‘‘तब, तुम जैसा मन करे, करना। मेरा तुमसे कोई संबंध नहीं रहेगा।’’

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