उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘इस प्रकार बात टल जाती। इस समय उनका सम्पर्क एक अनवर हुसैन, अवध के एक जमींदार के लड़के, से हो गया। दोनों जिमखाना क्लब में मिले थे। वहाँ बातचीत हुई थी। ऐना ने कह दिया, ‘‘मैं विवाह करने के लिये तैयार हूँ, पर मेरे पिताजी से स्वीकृति तब मिल सकती है, जब बीस हजार रुपया मेरे नाम पर आप जमा करा दें।’’
इस प्रकार अनवर हुसैन विलियम इरीन से मिला और बातचीत हो गयी। दोनों की शादी कचहरी में रजिस्टर्ड हो गयी। अनवर हुसैन ने कसम खाकर कह दिया कि उसकी और कोई बीवी नहीं।
टेलीग्राफ के कार्यालय से इरीन को नौकरी छोड़नी पड़ी और अनवर उसको अपनी जमींदारी पर, जो बाराबंकी में थी, ले गया। वहाँ पर सर्व-प्रथम समस्या पर्दे की उपस्थिति हुई। इरीन ने कह दिया कि वह जमींदारी पर और गाँव में पर्दा कर लेगी, पर जब भी वह नगर में जायेगी, पर्दा नहीं करेगी। इस प्रकार समझौता हो गया।
अनवर के बाप वाजिद हुसैन की चार शादीशुदा बीवियाँ थीं। इनके अलावा भी उसने दो-चार बाँदियों के रूप में रखी हुई थीं। वाजिद हुसैन ने जब अनवर की बीवी को देखा तो प्रसन्न हो गया। उसकी दृष्टि में वह बहुत सुन्दर थी। एक मुसलमान जमींदारी के लिये औरत की कीमत उसके सौन्दर्य में थी। औरत को कुछ काम करना नहीं पड़ता था। न ही गाँव में रहते हुए उसको घर से बाहर जाने अथवा किसी भी काम करने की स्वीकृति हो सकती थी। हरम में जमींदार की पत्नियों को खाने-पहनने और श्रृंगार करते रहने के अतिरिक्त कुछ काम नहीं हो सकता है। खाना बनाने, कपड़े तैयार करने और श्रृंगार करने के लिये भी दर्जनों नौकरानियाँ रखी हुई थीं। रात को, ऋंगार कर वे अपने पति की सेवा में हाजिर रहती थीं।
यही कारण था कि जब ऐना इरीन, जिनका नाम अनवर ने रहमत रख दिया था, हरम में आयी और नवाब साहब वाजिद हुसैन के सामने हाजिर हुई तो वह कह उठे, ‘‘वल्लाह! कमाल का हुस्न है! अनवर, मुबारक हो। कहाँ पा गये हो इसको?’’
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