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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘जिमखाना क्लब में अब्बाजान! यह लखनऊ के एग्जेक्टिव इन्जीनियर की लड़की है। शादी के वक्त इसकी माँ ने इसको बीस हजार रुपया दिया है और मैंने भी इसको बीस हजार देने का इकरारनामा किया है।’’

‘‘ठीक है। सस्ते में पा गये हो। देखो बहूँ!’’ नवाब साहब ने इरीन को सम्बोधन कर कहाँ, ‘‘यहाँ आराम-ही-आराम है। खूब खाओ और ऐश करो।’’

परन्तु इरीन जैसी प्रकृति की स्त्री को यह आराम भी खलने लगा। एक सप्ताह के पश्चात् भी वह अपने खाविन्द को लखनऊ चलने के लिये कहने लगी।

यद्यपि अनवर हुसैन ने ढेरों नावल लाकर इरीन के पास रख दिये थे और शराब, सिगरेट और बढ़िया-से-बढ़िया श्रृंगार का सामान लाकर दिया जाने लगा था, परन्तु दिन-भर अनपढ़ नौकरानियों की संगत तथा नवाब साहब की देहाती बीवियों और रखैलों की संगत से वह ऊब गयी थी।

बहुत कठिनाई से अनवर उसको एक मास तक वहाँ रख सका। आखिर उसने चुनौती दे दी। उसने कहा–‘‘मैं यहाँ कैद होने के लिये नहीं आयी। या तो कल मुझको कम-से-कम एक सप्ताह के लिये लखनऊ, दिल्ली, कानपुर, बम्बई, कलकत्ता जहाँ आपका मन हो, ले चलिये, अथवा मैं गाँव में घूमने निकल जाऊँगी और यहाँ की औरतों से मिलूंगी और खुली हवा में सैर करूँगी।’’

इस चुनौती के पश्चात् नवाब साहब को इजाजत देनी पड़ी कि छोटी बेगम को मोटर में पर्दा करके ले जाया जाये। वहाँ अपनी कोठी में रखने से तो सब नौकरों में बदनामी का डर था। रहमत (इरीन) ने लखनऊ में पर्दा नहीं करना था। इस कारण कार्लटन होटल में एक सप्ताह तक रहने का प्रबन्ध कर दिया गया।

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