उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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बेगम रहमत लखनऊ के कार्लटन होटल में ठहरी। वहाँ वह सिनेमा, थिएटर, क्लब और बाजार में घूमने-फिरने जाने लगी। लखनऊ में उसके कई मित्र थे। वह उनसे मिलती थी, परन्तु अपने पद का ध्यान रखकर। किसी प्रकार की गलत बात न हो जाये, इस कारण, जब कोई परिचित उससे मिलने आता था तो वह उसका अपने पति से परिचय करा देती। ‘‘देखो मिस्टर...! ये हैं मेरे हसबैंड नवाबजादा अनवर हुसैन।’’
‘‘ओह! मिसेज हुसैन! आई काँग्रैचुलेट यू।’’ इस पर मिलने वाले समझकर बात करने लगते।
एक दिन वह अपने पति अनवर हुसैन के साथ कैपिटल में चार्ली चैपलेन की ‘फेन्टम’ फिक्चर देखने गयी तो वहाँ विष्णुस्वरूप से भेंट हो गई। बम्बई से आने के पश्चात् ऐना से उसका सामना आज पहली बार हुआ था। दोनों ने एक-दूसरे को पहचान लिया।
विष्णु उसको एक मुसलमान युवक के साथ आते देख भौचक्का हो देखता रह गया। वह निश्चय नहीं कर सका था कि उसको बुलाये अथवा नहीं। परन्तु ऐना ने उसके सामने खड़े होकर कहा, ‘‘मुझको पहचाना है, मिस्टर विष्णु?’’
‘‘ओह!’’ विवश हो विष्णु को बोलना पड़ा, ‘‘ऐना! कैसी हो? बहुत दिन बाद नजर आयी हो?’’
‘‘पिक्चर देखने जा रहे हो?’’
‘‘हाँ।’’
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