उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘टिकट खरीदा है?’’
‘‘हाँ।’’
‘‘फेंक दो। हमने बॉक्स का टिकट लिया है। तुम हमारे साथ आ जाओ।’’
विष्णु ने प्रश्न-भरी दृष्टि में नवाबजादे की ओर देखा। इससे रहमत को चेतना हो गयी। उसने परिचय करा दिया, ‘‘ये हैं मेरे हसबैंड, नवाबजादे अनवर हुसैन, ताल्लुकेदार बाराबंकी के साहबजादे।’’
‘‘ओह! आई कांग्रैचुलेट यू सर, इन हैविंह सच ए नोबल वाइफ।’’
‘नोबल’ शब्द पर विष्णु ने विशेष बल देकर कहा था। इसका अर्थ समझ अनवर हुसैन बहुत प्रसन्न हुआ। वह बोला, ‘‘यदि आपको मेरी पत्नी का निमंत्रण स्वीकार हो तो आइये।’’
‘‘इन्कार कैसे कर सकता हूँ! चलिये।’’ विष्णु नवाब साहब के साथ उनके बॉक्स में जा बैठा। विष्णु जानबूझकर नवाब साहब के दूसरी ओर बैठा। एक ओर रहमत थी। अभी पिक्चर आरम्भ नहीं हुई थी कि रहमत ने आगे झुककर कहा, ‘‘विष्णु! अब मेरा नाम ऐना नहीं है, रहमत हो गया है।’’
‘‘फाइन!’’ उसने कह दिया, ‘‘ऐना से यह नाम अच्छा है। रहमत को अंग्रेजी में ‘ग्रेस’ कहते हैं।’’
‘‘तो तुम पसन्द करते हो?’’
‘‘हाँ। वैसे मुझको तुम्हारी शादी का समाचार जान बहुत प्रसन्नता हुई है।’’
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