उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
|
410 पाठक हैं |
संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘यह होनी ही चाहिये। मेरे मित्रों को मेरी प्रसन्नता में प्रसन्नता होनी ही चाहिये। मैं बहुत ही खुश हूँ।’’
इस समय पिक्चर आरम्भ हो गयी। यह हास्यमय चित्र था और हॉल के सब लोग खूब रस ले रहे थे।
मध्यान्तर के समय तीनों बाहर रेस्टोराँ में चले गये और कॉफी पी लौट आये। उनके आने के समय चित्र पुनः आरम्भ हो गया था। इससे वे जल्दी-जल्दी आये और बैठ गये। बैठने के बाद विष्णु को पता चला कि रहमत उसके साथ ही सीट पर बैठी है। नवाबजादे उसके दूसरी ओर थे।
जब ये पिक्चर देख रहे थे तो रहमत का हाथ विष्णु के हाथ में आया और उसके हाथ में एक कागज का टुकड़ा देकर हाथ लौट गया।
विष्णु समझ गया कि यह उसके लिये उसके पति से चोरी कोई संदेश है। उसने वह कागज का टुकड़ा अपनी जेब में रख लिया। रहमत जब कॉफी बन रही थी, तो टॉयलेट रूप में गयी थी और भीतर से लिखकर लायी थी।
पिक्चर समाप्त होने पर विष्णु नवाबजादे से कहने लगा, ‘‘सर! यह मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती थी और श्रेणी के सब विद्यार्थी मिस ऐना इरीन के लिये बहुत मान और आदर रखते थे। इसको कॉलेज छोड़ डेढ़ वर्ष के लगभग हो चुका है, मगर सब इसकी खुशमिजाजी को याद करते हैं।’’
साथ ही विष्णु ने अपना परिचय दे दिया, ‘‘मेरा नाम विष्णुस्वरूप है, मैं सेक्रेटेरिएट के डिप्टी फाइनेंस सेक्रेटरी, श्री शिवदत्त पाण्डे का लड़का हूँ। कभी कोई खिदमत मेरे लायक हो तो फरमाइयेगा।
‘‘अब मुझको इजाजत दीजिये। मुझे जल्दी जाना है।’’
अनवर हुसैन को समझ आया कि उसकी पत्नी का यह परिचित अन्य सबसे कुछ विलक्षण है। उसको पता चल गया था कि उसकी पत्नी भी इसको अन्य परिचितों से अधिक मानती हैं।
|