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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव

3

कॉफी पीकर जब रहमत और अनवर अपनी मोटर में लौटने लगे तो रजनी और इन्द्रनारायण से उनकी भेंट हो गई। रजनी और इन्द्रनारायण कॉलेज से घर वापस आ रहे थे। रहमत की दृष्टि रजनी पर पड़ी तो उसने अपने पति को मोटर रोकने के लिये कह दिया।

‘‘क्या बात है?’’

‘‘एक सहेली जा रही है।’’

अनवर हुसैन ने मोटर रोकते हुए कहा, ‘‘तुम्हारी सहेलियों और सहेलों ने तंग कर रखा है।’’

रहमत अपने पति के इस बड़बड़ाने को सुन नहीं रही थी। वह खिड़की में से हाथ निकालकर रजनी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रही थी। रजनी का ध्यान तो उधर नहीं था। हाँ, इन्द्रनारायण ने एक औरत को उनकी ओर हाथ से ठहरने का संकेत करते देख लिया था। उसने साथ चल रही रजनी को कहा, ‘‘ वह देखो, तुम्हें कोई बुला रहा है।’’

इस समय मोटर से रहमत बाहर निकल उनकी ओर आ रही थी। उसने सलवार-कुर्ता और चुनरी ओढ़ी हुई थी। इसके अतिरिक्त गले में कंठी, हाथ में चूड़ियाँ और कानों में कर्णफूल पहने हुए थी। नाक में हीरे के नगीने वाली कील थी। इस पहरावे में रजनी ने, पहले तो, उसको पहचाना ही नहीं। जम्पर-पेटीकोट, ‘बॉब-हेयर’ से कहीं अधिक सुन्दर वह इस पहरावे में लग रही थी। बहुत समीप आ जाने पर रजनी ने उसको पहचाना।

‘‘अरे, यह क्या?’’

‘‘मेरी शादी एक नवाब साहब के लड़के के साथ हो गयी है।’’

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