उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘सत्य? कहा?’’
‘‘बाराबंकी। तुम सुनाओ।’’
‘‘मैं तो मेडिकल कॉलेज में भरती हो गयी हूँ।’’
‘‘और यह इन्द्र?’’
‘‘ये भी।’’
‘‘मालूम होता है, दोनों में खूब पटने लगी हैं?’’
‘‘हाँ, ये हमारी कोठी में ही रहते हैं। पिताजी इनके व्यवहार से बहुत प्रसन्न हैं।’’
‘‘विवाह कब होगा?’’
‘‘जब कोई नवाबजादा मिल जायेगा।’’
‘‘चलो, कामचलाऊ बात तो बन ही गयी है।’’
‘‘हाँ, खैर! एक बात तो ठीक हुई है। तुम्हारा यह ठिकाना विष्णु के ठिकाने से अच्छा बन गया है। वह तो इतनी बढ़िया मोटर में नहीं घुमा सकता था तुमको।’’
‘‘बाई गाड्स ग्रेस, आई एम वेरी हैप्पी (ईश्वर की कृपा से मैं बहुत प्रसन्न हूँ।)’’
‘‘मेरी बधाई स्वीकार हो।’’
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