|
उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
|
410 पाठक हैं |
संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘सक्सेना हँसते हुए पूछने लगा, ‘‘कभी वे एक-दूसरी की चोटियां पकड़ कर लड़ाती हैं या नहीं?’’
‘‘नौबत यहाँ तक नहीं पहुँची। हाँ, अपने-अपने कमरों के दरवाजे बन्द करके बैठने के मौके तो कई बार आए हैं। परन्तु बहनें होने से उनमें फिर सुलह हो जाती है और मुसीबत की रातें आनी शुरू हो जाती हैं।’’
‘‘चारों में कोई समझदार और उनकी लीडर नहीं क्या?’’
‘‘है, सबसे बड़ी बेगम। जब-जब उनमें झगड़ा होता है, वह सुलह कराने में कामयाब हो जाती है।’’
‘‘तो आप उसको अपने काबू में रखें और दूसरियों को उसके खिलाफ रख सकें तो कामयाब हो सकेंगे।’’
‘‘मुश्किल यह है कि वह बहुत लोभिन है। जब भी उसके कमरे में जाओ, जेब खाली होकर वहाँ से आया जा सकता है।’’
‘‘इनमें से नरम मिजाज और मीठा बोलने वाली कौन-सी है?’’
‘‘सब बहनों से छोटी है। यूँ खूबसूरत भी सबसे ज्यादा है।’’
‘‘तो आप दूसरियाँ को छोड़ नहीं सकते?’’
‘‘मजबूरी है।’’
‘‘मुझको आपकी हालत सुनकर हमदर्दी पैदा हो गयी है।’’
|
|||||

i 









