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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘तो उसको अमली जामा पहनाइये। बताइये, नवाब साहब ने मेरे लिए क्या लिखने को कहा है?’’
‘‘यह तो एक राज की बात है।’’
‘‘हाँ, मगर हर राज का कुछ दाम हो सकता है। बोलिए, इसका क्या दाम हो सकता है?’’
‘‘आप बताइये, कितना दे सकते हैं?’’
‘‘यह तो अपनी हालत जानकर ही दिया जा सकता है।’’
‘‘मान लीजिए कि आपको कुछ भी मिलने वाला नहीं। तब?’’
‘‘उस हालत में इसका इलाज भी बताना होगा, नहीं तो मैं दे भी क्या सकूँगा?’’
‘‘दोनों बातें अलहदा-अलहदा हैं। देखिये, वसीयत पढ़ने को मिल जायेगी, अगर आप पाँच हजार नकद नोटों में दे सकें। उसमें आप क्या परिवर्तन चाहते हैं यह जानकर ही दूसरी बात का मूल्य बताया जा सकता है।’’
‘‘पाँच हजार तो बहुत ज्यादा हैं। हाँ, एक हजार तक दे सकता हूँ।’’
सक्सेना हँसने लगा। हँसकर उसने कहा, ‘‘ऊपर से तो आप शेख लगते हैं पर बातें बनियों जैसी करते हैं।’’
‘‘भाई, जेब की लम्बाई-चौड़ाई कम हो रही है। इससे बनियापन करना पड़ रहा है।’’
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