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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘लाना तो पड़ेगा, टिम! इसके बिना चलेगा नहीं। कोई तुम्हारी ओर आकर्षित ही नहीं होगा।’’

‘‘तो तुम्हीं कुछ सहायता कर दो ना? कुछ उधार दे दो। कहीं काम बनते ही वापस कर दूँगी।’’

‘‘खैर! कुछ रुपया तो मैं दे सकती हूँ, परन्तु उससे काम नहीं चलेगा। अच्छा, तुम कल मेरे साथ मेरे हेयर ड्रेसर के पास चलना। तुम्हारे बाल ठीक से बनवा दूँगी। और फिर तुम्हारे लिए उचित सामान ले दूँगी। तुम्हें मैं श्रृंगार करने का ढंग बताऊँगी। लेकिन एक बात है, जितना मेरा खर्च होगा, तुम्हारा काम हो जाने पर तुम्हें दुगुना वापस देना होगा।’’ ऐना ने मुस्कराते हुए कहा।

‘‘ले लेना। विवाह होने पर ही तो लोगी।’’

‘‘हाँ, मुझे विश्वास है कि बड़ी जल्दी तुम्हारा काम बन जायेगा।’’

अगले दिन ऐना उसको अपने इटैलियन हेयर ड्रेसर के पास ले गई और फिर वहाँ से टेलर तथा ड्रेपर के पास। पश्चात् उसने उसके लिए बढ़िया से बढ़िया क्रीम, पाउडर, लिपस्टिक, रूज इत्यादि सामान खरीदवा दिया। साथ ही ऐना ने उसको चलने-फिरने तथा बात करने का ढंग बता दिया।

कुछ ही दिनों में टिमोथी स्मिथ एक अत्यन्त ही आकर्षक युवती बन कर दफ्तर जाने लगी। इस पर भी कदाचित् उसका विवाह इतनी जल्दी न हो पाता, यदि कलकत्ता के एक युवक इंजीनियर की बदली लखनऊ टेलीग्राफ डिपार्टमेंट में न हो जाती। लखनऊ के ऐंग्लों-इंडियन युवक तो मिस स्मिथ को जानते थे। वे अब चटक-मटक और पहरावे से यही समझते थे कि कहीं से पड़ा हुआ धन मिल गया है।

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