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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


मिस्टर पी० बैस्टन कलकत्ता के कार्माइकल टैक्निकल में से इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर, टेलीग्राफ विभाग लखनऊ में नियुक्त हुआ तो टिमोथी स्मिथ, जो उसके ही विभाग में काम करती थी, उससे मेल बढ़ाने में लग गई। बैस्टन उसकी ओर आकृष्ट हुआ तो उससे प्रेम करने लगा और उसके लखनऊ में आने के एक मास की अवधि में ही दोनों का विवाह हो गया।

टिमोथी को पोशाक और श्रृंगार की कीमत का ज्ञान हो गया था। उसने ऐना को रुपया वापस करते हुए उसका धन्यवाद किया। ऐना ने उसको अपने रहन-सहन, पहरावे और पोशाक के विषय में एक लेक्चर दिया।

जब बैस्टन उसको कहता, ‘‘यू लुक हेवनली, टिमोथी! आई कांग्रेसचुलेट माईसैल्फ इन हैविंग यू ऐज माई वाइफ’’ (तुम स्वर्गीय जीव प्रतीत होती हो, टिमोथी! मैं तो तुम जैसी पत्नी पाने पर अपने को धन्य समझता हूँ।) तो टिमोथी मन में विचार करती थी–पुरुष भी कितना मूर्ख जीव है! मेरी पोशाक और बनाव-श्रृंगार को ही एक स्त्री समझ रहा है। इस पर भी वह अपने मन की यह बात कहती नहीं थी। वह उसके कहने के उत्तर में कह दिया करती, ‘‘भगवान् ने मुझे आपके लिये ही बनाया है। बताइये, मैं आपके लिए क्या करूँ जिससे आप प्रसन्न रह सकें?’’

इस प्रकार कार्य चल रहा था। विवाह हुआ तीन वर्ष हो गए थे और टिमोथी अनुभव करने लगी थी कि उसके अपने पति से सम्बन्धों को स्थिर रखने के लिए उसके सन्तान नहीं होनी चाहिए। वह समझती थी कि गर्भावस्था में वह अपने शरीर की रूपरेखा को सर्वथा ऐसी नहीं रख सकेगी जैसी कि अब है। वह प्रत्येक प्रकार से बच्चा पैदा न होने का उपाय करती रहती थी।

इस पर भी गर्भ स्थिर हुआ।

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