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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
इस बीच ऐना नवाब साहब की हत्या के मुकदमे में फंसी और पाँच मास तक मुकदमा चलने पर पुलिस ने मुकदमा वापस ले लिया। पुलिस यह पता न लगा पाई थी कि शराब में विष किसने मिलाया था।
पुलिस ने गाँव वाले मकान की तलाशी ली थी। वहाँ ऐना के कमरे में रखी शेष बोतलें भी अपने अधिकार में कर ली थी। उनमें भी विष घुला हुआ पाया गया था। बोलतें विधिपूर्वक बन्द थीं।
बहुत जाँच करने के पश्चात् पता लग सका कि विष इंजेक्शन की पिचकारी के कॉर्क में सुई चुभोकर मिलाया गया है। सब बोतलों के कार्क में एक बारीक-सा सुराख पाया गया। परन्तु यह किसने और कब किया है, पता न लग सका और मुकदमे की आरम्भिक जाँच में ही इसे फाइल कर दिया गया।
इस पर भी इस मुकदमें में ऐना और अनवर पुनः बहुत समीप-समीप आ गये। मुकदमे में ऐना ने अनवर की बहुत सहायता की थी। उसकी रक्षा के लिए हर प्रकार की झूठी-सच्ची साक्षियां दी गयीं और दिलवायी गयीं, जिससे यहाँ तक निश्चय करा दिया गया कि अनवर कई मास से गाँव में नहीं गया।
बेगम फातिमा पर भी सन्देह किया गया, परन्तु जब उससे पूछा गया तो वह कुरान शरीफ पर हाथ रखकर कसम खाने लगी कि वह इसकी बाबत कुछ भी नहीं जानती।
नवाब साहब की सब बीवियाँ और अनवर की चारों बीवियाँ भी यह पुष्टि कर रही थीं कि यह ऐना का ही काम है। परन्तु उसका स्वयं भी विषयुक्त शराब पी जाना और फिर उसका गाँव में न आना इस बात को प्रकट करता था कि उसको शराब में विष होने तक का ज्ञान नहीं था। ऐना ने ही डॉक्टर को बुलाया था और पुलिस में रिपोर्ट लिखायी थी। किसी पर उसने अपना सन्देह प्रकट नहीं किया। मुकदमा समाप्त होते ही जमींदारी अनवर के हाथ में चली गयी।
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