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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
ऐना लखनऊ वाली कोठी में ही रहती थी और अनवर महीने में पन्द्रह दिन उसके साथ रहता था। इससे उसकी चारों पत्नियाँ नाराज थीं। एक दिन असगरी ने अपने पति से कह दिया, ‘‘आप महीने में पन्द्रह दिन लखनऊ में रहते हैं। वहाँ क्या है?’’
‘‘वहाँ मुझको यहाँ से ज्यादा आराम मिलता है।’’
‘‘तो हमको भी साथ ले चला करिये। हम भी आपके आराम में हिस्सेदार बन जायें।’’
‘‘तुमसे अलहदा रहने में ही तो आराम है। तुम लोगों के साथ जाने से तो आराम ही नहीं।’’
‘‘हम आपको क्या कहती हैं?’’
‘‘मैं यह बयान नहीं कर सकता।’’
‘‘मैं बताऊँ, यहाँ बड़ी बेगमें और हम चारों बहनें यह शक कर रही हैं कि वहाँ आपका ऐना से फिर सम्बन्ध हो गया है।’’
‘‘हो सकता है। वह आप चारों से अच्छी है।’’
‘‘नादिरा से भी?’’
‘‘मैं आज जिस्मानी खूबसूरती का मुकाबला नहीं कर रहा। मैं तो इखलाकी जुर्रत और बुर्दवारी का जिकर कर रहा हूँ।’’
‘‘क्या औसाफ देखे हैं आपने उसमें? उस बदकार औरत को आप हम नेक, पाक, दीनदार औरतों पर तरजीह दे रहे हैं।’’
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