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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘देखो असगरी! वह तुम्हारी तरह तुमको या किसी को भी गालियाँ नहीं देती। जब मैंने उससे कहा था कि मैं नादिरा के इश्क में बेताब हो रहा हूँ तो वह फौरन मुझको नादिरा के पाने के लिये अपनी कुर्बानी करने के लिए तैयार हो गयी। वह मेरे कहे अनुसार ही तलाक की दरख्वास्त देने के लिये तैयार हो गयी। मेरे लिये उसने अपने-आपको बदनाम कराया और हर किस्म की जहालत सहने को तैयार हुई।
‘‘इधर तुम हो जब से तुम बहनों को यह पता चला है कि वह अभी भी मुझसे मुहब्बत करती है, उससे हसद से जला करती हो।’’
असगरी ने अपनी निन्दा सुन क्रोध में कह दिया, ‘‘वह आपसे कभी मुहब्हत नहीं करती; बल्कि वह तो आपके रुपये से मुहब्बत करती है। अगर ऐसा न हो तो वह आपको छोड़कर आपके वालिद शरीफ के बिस्तर को रौनक बख्शती।’’
‘‘वह तो मैंने सब जान लिया है। वालिद साहब ने उसको फुसलाया था। एक पचास साल का तजुर्बेकार शख्स एक बीस-बाईस साल की लड़की से क्या कुछ नहीं करा सकता? जानना चाहती हो वालिद साहब ने उसको क्या कुछ दिया है इस सबके लिये? मुझको उसने वे तोहफे दिखाये हैं, जो उसको दिये गये थे। उनकी कीमत सात लाख से कम नहीं हो सकती। इतने में तो जन्नत के फरिश्ते भी फुसलाये जा सकते हैं।’’
‘‘और इन्हीं तोहफों के बदले में उनको जहर मिलाकर यहाँ से रुखसत कर दिया है?’’
‘‘मैं जानता हूँ कि नवाब साहब को किसने जहर दिया है। उसी ने दिया है जो उन दोनों से दुश्मनी करता था, जिसका खयाल था कि वसीयत ऐना के नाम लिखी जा रही है।’’
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