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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘कौन था वह?’’

‘‘तुम। तुमने मुझे वकील को रिश्वत देकर वसीयत बदलवाने के लिये कहा था। मैं लखनऊ गया था और वसीयतनामा पढ आया था। तुमने उस रात मुझसे एक बात कही थी। मुझको वह बात अच्छी तरह से याद है। तुमने कहा था कि मुझे उस रात यहाँ नहीं आना चाहिये था। अगर किसी को पता चल गया कि मैं यहाँ हूँ तो गजब हो जायेगा।

‘‘मैंने इसका मतलब जानने की कोशिश की, मगर तुमने बताया नहीं। मैं समझा भी नहीं। उस रात दिन निकलने से पहले ही मैं गाँव से लखनऊ लौट गया।

‘‘अब? नवाब साहब के फौत हो जाने के छः महीने गुजर जाने पर, जब मैं उन हालत पर गौर करता हूँ तो मेरी उँगली उस हादसे की जिम्मेदारी के लिये तुम पर पड़ती है।’’

असगरी का मुख विवर्ण हो गया। उसके होंठ श्वेत पड़ गये और काँपने लगे थे। इस पर भी उसने कह दिया, ‘‘यह सब गलत है।’’

‘‘हो सकता है। मगर असगरी! तुम्हारी सूरत कह रही हैं कि तुम्हीं इस बात की जिम्मेदार हो। इस पर भी मैं यह कहता हूँ कि मैं अपनी असगरी को फाँसी के तख्ते पर खड़ा नहीं देख सकता। तुमने जो कुछ किया, वह गलत किया है और एक गलत खयाल से किया है।’’

इन दिनों टिमोथी को गर्भ ठहर गया। उसको पाँचवाँ महीना जा रहा था। नवाब साहब की हत्या का मुकदमा वापस लिया गया तो टिमोथी बधाई देने के बहाने ऐना से मिलने गयी। ऐना और अनवर बैठे चाय पी रहे थे। टिमोथी को देख ऐना ने उसको भी चाय के लिये बुला लिया। टिमोथी ने बैठते हुए कहा, ‘‘ऐना! आज प्रातःकाल ‘पायेनीयर’ में तुम्हारे श्वशुर नवाब साहब के मुकदमे की कार्यवाही पढ़ी तो चित्त प्रसन्न बहुत हुआ। मुझको चिन्ता थी तुम्हारे और तुम्हारे हसबैंड के विषय में। आप दोनों के विषय में मजिस्ट्रेट ने साफ लिखा है कि आप पर संदेह करने में कोई भी प्रमाण नहीं। इसलिये मैं तुमको बधाई देने आई हूँ।’’

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