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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इसके पश्चात् अनवर को देख उसने उसे भी कह दिया, ‘‘आपको अपनी पत्नी की सहेली की बधाई स्वीकार हो।’’

अनवर आज बहुत प्रसन्न था। उसने कहा, ‘‘तो क्या आप नहीं जानतीं कि आपकी सहेली ने मुझको तलाक दे रखा है?’’

‘‘यह तलाक तो एक कानूनी बात थी। कानून इन्सान के बनाये हैं। मगर हम कैथोलिक ईसाई तो शादी को इन कानूनों के मातहत नहीं मानते। हम तो यह मानते हैं कि शादियाँ परमात्मा निश्चय करता है। इसको इन्सानी कानून न तो बना सकते हैं और न ही तोड़ते हैं।’’

अनवर हँस पड़ा। हँसकर उसने कहा, ‘‘तुम भी हिन्दुओं जैसी बातें करती हो। ऐना का एक मित्र इन्द्रनारायण जिसने ऐना को इस मुकदमे से बचाने के लिये बहुत कुछ किया है, एक दिन मुझको बता रहा था कि ईश्वर की ओर से बनाये संबंध कभी इन्सान तोड़ता है अथवा बिगाड़ता है तो वह उससे अपने को ही हानि पहुँचाता है। सम्बन्ध बिगड़ नहीं सकते।

‘‘मैंने उससे पूछा था–‘यह कैसे पता चले कि वह ताल्लुक खुदा ने बनाया है और फलाँ ताल्लुक इन्सान की नाकस अक्ल ने?’’

‘‘उसका कहना था, ‘इस बात की गवाही इन्सान को अपनी रूह देती है। रूह को आजादी से अपना रास्ता पाने दो तो वह परमात्मा के बनाये रास्ते को पकड़ेगी।’ ’’

‘‘मैं समझती हूँ कि यह बात हिन्दुओं ने कैथोलिक मत वालों से सीखी है।’’ टिमोथी ने कह दिया।

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