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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


अनवर पुनः हँस पड़ा। हँसकर उसने कहा, ‘‘किसने किससे सीखी है, यह तो तुम जानो अथवा तुम्हारे मत वाले जानें। इन्द्रनारायण कह रहा था कि हिन्दुओं ने हजारों साल के तजुरबे से यह समझा है कि विवाह-सम्बन्ध टूटने नहीं चाहिये। इन्सान गलतियाँ करता है। उन गलतियों को सुधारने की कोशिश करनी चाहिये न कि गलती करने वाले को तबाह कर देना चाहिये। उसने कहा था कि रूप परमात्मा का ही एक हिस्सा है। उस पर वहम के बादल छा जाते हैं तो वह गलत ढंग से सोचने लगता है, मगर खुदावन्द करीम की मेहर से रूह फिर वहमों से बरी हो जाता है और मुकम्मल में हिस्सा मिलकर नजात हासिल करता है।’’

‘‘यही तो हम भी मानते हैं।’’

‘‘अब मैं भी मानने लगा हूँ। यही वजह है कि मैं ऐना से अपने पुराने ताल्लुकात फिर बना रहा हूँ। मुझको अब फिर वैसी ही खूबसूरत दिखाई देने लगी है, जैसे कि पहले दिन देखने पर लगी थी।

‘‘यूँ तो यह बूढ़ी हो रही है। इस बार के ऑपरेशन ने इसका रंग भी कुछ मैला कर दिया है, मगर अब मैं इसको न देखकर इसकी रूह को देखता हूँ। इस तरह इसको अपनी शादीशुदा बीवियों से ज्यादा खूबसूरत पाता हूँ।’’

‘‘ऐना हँसते हुए कहने लगी, ‘‘तो मुझको अपनी मौजूदा खुशी के लिये भी इन्द्रनारायण का एहसानमन्द होना चाहिये।’’

‘‘अनवर उठ पड़ा और कहने लगा, ‘‘मुझको अपने गाँव में पहुँचना है। अब काफी देर हो रही है और यह तुम्हारी सहेली न जाने तुमसे क्या-क्या बातें करने आई है। लो, मैं चलता हूँ।’’

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