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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव

2

अनवर गया तो टिमोथी ने पूछ लिया, ‘‘यह तुम्हारे साहब तो अब बहुत ही सीधे हो गये हैं?’’

‘‘हाँ। पन्द्रह दिन हवालात की हवा खायी है तो खुदा नजर आने लग पड़ा है।’’

‘‘इन्द्रनारायण तुमसे मिलते रहता है क्या?’’

‘‘नहीं। वह नवाब साहब के फौत होने के दिन मुझको नवाब साहब से खबरदार करने आया था और फिर उसके अदालत में बयान भी हुए हैं। मैं आज उसका शुक्रिया अदा करने राय साहब सिन्हा की कोठी पर गयी थी। हकीकत में उसने ही मेरे बचने का मार्ग बताया था। अगर मैं भी जेल चली जाती तो मेरे साहब भी शायद न बच पाते। पुलिस तो उनके पीछे ही पड़ गयी थी। मैं बाहर होने से उनकी मदद करने में कामयाब हो गयी।’’

‘‘रजनी का क्या हाल है?’’

‘‘इन्द्रनारायण तो वजीफा लेकर आगे पढ़ाई के लिये बियाना चला गया है और रजनी अपने एक प्रोफेसर से ही विवाह कर बैठी है।’’

‘‘बहुत खूब! दोनों ही किस्मत वाले हैं।’’

‘‘हाँ। इन्द्रनारायण तो मिला नहीं। रजनी मिली थी। उसकी शादी हुए तीन-चार मास ही हुए हैं। मैंने उससे पूछा था, ‘प्रसन्न हो?’ तो वह कहने लगी, ‘‘मैं संतुष्ट हूँ।’ ’’

‘‘इसका क्या मतलब हुआ?’’ टिमोथी ने पूछा।

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