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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘उसका कहना था कि उसके किसी ने नाराज होने में कोई वजह नहीं।’’

 ‘‘यह तो कुछ भी न हुआ। शादी के पहले दिनों में तो ‘पॉजिटिव हैप्पीनेस’ (साक्षात् आनन्द) महसूस होना चाहिये।’’

‘‘मैंने उससे पूछा था तो उसने कहा कि यह विवाह एकाएक हुआ है। परीक्षा देकर वह खाली हुई तो उसके एक प्रोफेसर, जो लन्दन यूनिवर्सिटी के एम० डी० हैं, उसके पिताजी से मिलने आये और उसको शादी में माँग बैठे और विवाह हो गया।’’

‘‘ऐना!’’ टिमोथी ने अपने वहाँ आने का प्रयोजन बताते हुए कहा, ‘‘मैं अपने विषय में तुमसे राय करने आयी थी।’’

‘‘क्या हुआ है?’’

‘‘देख नहीं रहीं?’’ उसने अपने पेट पर हाथ फेरते हुए कहा।

‘‘कह नहीं सकती। व्यवहार में कुछ अन्तर आ गया है, परन्तु वह अरुचि है अथवा दया है, कहना कठिन है।

‘‘देखो टिमोथी! मैं इस अवस्था में से दो बार गुजर चुकी हूँ। मैं उन दिनों का अनुभव बताती हूँ। गर्भावस्था में स्त्री प्रकृति से सहवास योग्य नहीं रहती। वे मनुष्य, जिनका व्यवहार नेचर (प्रकृति) के अधीन होता है, इसमें अरुचि-सी अनुभव करने लगते हैं। ऐसी अवस्था में दो प्रकार के पुरुष इसकी इच्छा करते हैं–एक तो वे जो विचारहीन और अस्वाभाविक प्रकृति रखते हैं : दूसरे वे दो अपनी अज्ञानता के कारण अपने साथी को नाराज न करने के विचार से अस्वाभाविक स्वीकार कर लेते हैं।

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