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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘तुम यह जानो और फिर अपने कार्य में स्वाभाविक रूप से लीन रहो। प्रसव के बाद ठीक होने पर सब-कुछ ‘नार्मल’ हो जायेगा।’’
टिमोथी इस प्रकार के विषयों में ऐना को अपना गुरु मानती थी। उसने मार्ग सुझाया था और वह अब एक गृहिणी का संतुष्ट जीवन व्यतीत कर रही थी। अब उसने इस नवीन परिस्थिति में भी मार्ग बताया और टिमोथी समझती थी कि वह ठीक ही कह रही है। इस समय उसको ‘युजैनिक्स’ की एक ज्ञाता डॉक्टर मेरी स्टोप्स का एक लिखा वाक्य स्मरण हो आया। उसने लिखा था, ‘गर्भ की अवस्था में सहवास, होने वाली सन्तान पर, बहुत ही अच्छा प्रभाव रखता है।’
टिमोथी ने ऐना को यह बात कही तो ऐना ने कह दिया, ‘‘मैं ऐसा नहीं मानती। प्रसन्न, संतुष्ट और पति पर श्रद्धा रखने का प्रभाव तो संतान पर हो सकता है, परन्तु सहवास के विषय में मुझको उसके कहने पर संदेह है।’’
टिमोथी संतुष्ट और पहले से अधिक विश्वास के साथ अपने घर लौटी। मिस्टर बैस्टन दफ्तर से लौट, सिगरेट पीते हुए अपनी पत्नी की प्रतीक्षा में बैठा था। टिमोथी आयी तो उसने पूछ लिया, ‘‘कहाँ गयी थीं?’’
‘‘डॉक्टर के यहाँ गयी थी।’’
‘‘क्यों?’’ उसने चिन्ता प्रकट करते हुए पूछा, ‘‘क्या कुछ कष्ट था?’’
‘‘हाँ, पेट में कुछ कड़ापन अनुभव होने लगा था। मैंने दिखाया तो वह बोली कि कुछ भी कष्ट नहीं है। सुबह लॉन में टहल किया करो।’’
‘‘हाँ। ठीक है। तुम सारा दिन उदास-सी बनी कमरे में बैठी नावल पढ़ा करती हो।’’
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