|
उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
|
410 पाठक हैं |
संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
टिमोथी नौवें मास में थी कि एक दिन ऐना और अनवर उससे मिलने आये। अनवर की रुचि उसमें उस दिन उत्पन्न हुई थी जिस दिन टिमोथी ने कहा था कि उनके विश्वास के अनुसार विवाह परमात्मा की ओर से निश्चय होते हैं। वह टिमोथी को एक बहुत ही साधारण रूपरेखा की युवती समझता था। उसका पति इन्जीनियर था और ग्यारह सौ रुपये वेतन पाता था। अनवर यह अनुभव करता था कि मिस्टर बैस्टन को ऊपर की आय होती होगी। लाखों रुपये का काम उसके अधीन होता था। ऐसा आदमी भला टिमोथी जैसी औरत को कैसे रखता है। यह एक जानने का विषय था।
जब ये दोनों पहुँचे तो टिमोथी लेटी हुई थी। वह कोठी के लॉन में टहलकर आयी थी और थक जाने पर लेट गयी थी। उसका पति उसकी पीठ के पीछे तकिये रखकर उसका लेटना सुखदायक बना रहा था।
टिमोथी इनको आये देख मुस्कराई। ऐना ने आते ही पूछ लिया, ‘‘क्या बात है? इस समय कैसे लेट रही हो?’’
‘‘लॉन में टहलती रही हूँ, इससे कुछ थकावट हो गयी है। आओ, बैठो।’’
अनवर को देख उसने कह दिया, आप भी आये हैं। मैं आपकी बहुत आभारी हूँ।’’
अनवर के पास रखी हुई एक कुर्सी पर बैठते हुए कह दिया, ‘‘ऐना आपका समाचार जानने के लिये आ रही थी। मैंने विचार किया कि मैं भी मिल आऊँ तो क्या हानि है! सो चला आया हूँ।’’
‘‘टिमोथी! मेरा विचार है कि अब यह कष्ट टलने ही वाला है।’’ ऐना ने उसके पास बैठते हुए कह दिया।
|
|||||

i 









