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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
टिमोथी ने मुस्कराते हुए कह दिया, ‘‘मुझको कष्ट नहीं है। यूँ तो पहले से भी ज्यादा आराम है।’’ यह उसने अपने पति की ओर टेढ़ी दृष्टि से देखते हुए कहा, ‘‘मेरी इतनी सेवा करते हैं कि मैं समझती हूँ कि मैं अवश्य ही परमात्मा की प्रिय आत्माओं में से हूँ। इनकी मुझ पर अत्यन्त कृपा है।’’
ऐना टिमोथी के पलंग पर ही बैठी थी। वह उसके सिर पर हाथ फेरने लगी। मिस्टर बैस्टन उसके व्यवहार को देख मन-ही-मन प्रसन्न था। वह समझ रहा था कि इनके आने से टिम का मन सुख अनुभव करने लगा है।
टिमोथी ने ऐना से पूछा, ‘‘रजनी मिली है कभी?’’
‘‘हाँ। अब प्रायः नित्य ही मिलती है। हमारी कोठी के पीछे इमारती काम करने वाले मजदूरों की एक बस्ती है। वह नित्य प्रातःकाल अपना ‘मेडिसन का चैस्ट’ लेकर वहाँ बच्चों और औरतों को देखने आती है। उनको निःशुल्क देखती है और बिना कुछ लिये दवा देती है।’’
‘‘दवाईखाना कहाँ रखा है?’’
‘‘वह डॉक्टरी का कार्य रुपया कमाने के लिये नहीं करती। घर पर ही उसने बहुत-सी दवाइयाँ लेकर रखी हुई हैं। वे सब दवाइयाँ बिना मूल्य बाँटने के लिये हैं।’’
‘‘वह चिकित्सा-कार्य क्यों नहीं करती?’’
‘‘कहती है कि उसका पति इतना कमा लेता है कि उसको काम करने की कोई आवश्यकता नहीं है। यूँ तो उसको कॉलेज में ही नौकरी मिलती थी, परन्तु उसने नौकरी करने से इन्कार कर दिया है। वह निर्धनों की सेवा कर बहुत प्रसन्नता अनुभव करती है।’’
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