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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘बहुत अच्छी है वह औरत?’’ बैस्टन ने पूछ लिया।

‘‘जी हाँ। हमारी सहपाठिन है।’’

‘‘क्रिश्चियन कैथोलिक हैं?’’

‘‘नहीं, हिन्दू है। उसका पिता एक विख्यात वकील है और उसके पति एक मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर हैं। पन्द्रह सौ रुपये मासिक वेतन पाते हैं।’’

‘‘तभी उसको रुपया कमाने की आवश्यकता नहीं। इस पर भी मैं उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रह सकता।’’

इस पर ऐना ने बताया, दो मास हुए मैंने कोठी में एक दीवार बनवानी थी। मजदूर और राज काम कर रहे थे। एक औरत, जो ईंट उठाया करती थी, देर से आयी मैंने पूछ लिया, तुम एक घंटा देर से क्यों आयी हो?’’

‘‘तो उसने बताया, हमारी बस्ती में एक डॉक्टरायिन आयी हुई थी। मेरे पेट में दर्द था। वह दवाई पिला एक घंटा लेटे रहने को कहती थी।’

‘‘उसी दिन मुझे रजनी मिल गई। वह बस्ती में घूम रही थी। उसके हाथ में दवाइयों का डिब्बा था। मैंने नौकरानी को भेज उसको बुला लिया। वह आयी तो पता चला कि वह एक महीने से रोज उस बस्ती में आती है।

‘‘मैंने पूछा, ‘कभी कोठी में क्यों नहीं आयीं?’’

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