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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘उसका कहना था, ‘‘मुझको विदित नहीं था कि तुम फिर इस कोठी में आ गयी हो।’

‘‘उसका विचार था कि मैं हिवैट रोड वाली कोठी में रह रही हूँ।

‘‘मेरे आग्रह पर अब उस बस्ती में काम कर मेरी कोठी पर चाय लेने के लिये अवश्य आती है। ये नवाब साहब तो उस पर लट्टू हो रहे हैं। यह कहते हैं कि वह ‘खुदा की बेटी’ (देवी) है।’’

‘‘वह अभी तक ‘खाली पेट’ है?’’

‘‘हाँ। प्रत्यक्ष में तो कुछ बात मालूम नहीं होती।’’

‘‘बैस्टन ने घड़ी देखते हुए कह दिया, ‘‘मुझे काम पर जाना है। आप बैठिये।’’

बैस्टन के जाने पर टिमोथी ने कह दिया, ‘‘रजनी को कहना था कि मैं भी उसकी सहायता की इच्छा रखती हूँ। मुझ गरीब पर भी दया किया करे तो बहुत कृपा होगी।’’

‘‘कहूँगी। वह तुम्हारा मकान नहीं जानती। उसको लेकर मुझे ही आना पड़ेगा।’’

अब अनवर ने पूछ लिया, ‘‘मिसेज बैस्टन! तुम्हारा पति तो तुम्हारी बहुत सेवा करता मालूम होता है?’’

‘‘यह भगवान् की कृपा है। एक समय था कि मैं अपने जीवन से भी निराश हो गयी थी। मुझको कोई भी पसंद नहीं करता था। जिसको मैं आकर्षित करना चाहती थी, वह मेरा तिरस्कार कर देता था। एक बार तो मैं अपने गले फँदा डालकर, अपने कमरे में पंखे से लटक जाना चाहती थी। उस समय ऐना ने मुझको एक मार्ग दिखाया। मैंने उस मार्ग पर चलना शुरू किया तो उसका परिणाम यह हुआ कि मेरा मिस्टर बैस्टन से विवाह हो गया।

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