लोगों की राय

उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


‘‘इसी से मैं समझती हूँ कि जो कुछ भगवान् ने निश्चय किया होता है, वही होता है।’’

अनवर के लिये इसमें बहुत कुछ विचार के लिये सामग्री थी। वह विचार करता था कि एक नवाब की चार लड़कियाँ उसको मिलनी थीं, वे मिलीं। अनायास ही पत्नी बन गयीं और अब रूठ भी गयीं। इसमें क्या हो सकता था? जो कुछ होना था, वही हुआ। अथवा जो कुछ नहीं होना चाहिये था, वह हुआ है।

वह जानता था कि जब से उसने असगरी पर सन्देह प्रकट किया है वह इतनी चिड़चिड़े स्वभाव की हो गयी है कि अपनी बहनों तक को गालियाँ देने लगी है। उसकी बहनें भी परस्पर लड़ती हैं। यह सब समझती हैं कि अनवर दूसरों से अधिक अच्छा व्यवहार करता है। सब नादिरा पर अधिक नाराज हैं। नादिरा सबसे अधिक दुखी है। वह जानती है कि उसका पति उसको भी छोड़ बैठा है। यद्यपि उसकी बहनें उसको सबसे अधिक सौभाग्यवती मानती हैं।

यह सब क्या है? यदि यही खुदा की मरजी है तो वह बड़ी अन्यायी है। यदि यह समझा जाये कि किसी की भूल के कारण उनको कष्ट है तो भूल तो उसके पिता ने की थी। कुछ सीमा तक अनवर अपने को भी दोषी मानता था। एक के लिये उनके पिता ने व्यर्थ में दूसरी तीनों को भी फँसाया। इधर अनवर ने भी उनसे धोखा किया और झूठ-मूठ का तलाक का नाटक रच दिया।

यदि भूल की तो इन दो पुरुषों ने की है और इनको सजा मिलनी चाहिये। हालत यह है कि ये दोनों खुश हैं और सुखी हैं। दुःख है तो इन चार बहनों को।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book