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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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रजनी का विवाह भी श्री सीताराम आनन्द, पंजाब में जिला जालन्धर के रहने वाले एक युवक से हुआ था। डॉक्टर आनन्द चार वर्ष तक इंगलैंड में रहकर चिकित्सा का अभ्यास करके भारत लौटा था। यहाँ आकर वह लखनऊ मेडिकल कॉलेज में नियुक्त हो गया। उसे यहाँ पढ़ाते हुए एक वर्ष से ऊपर हो गया था। जब से उसकी दृष्टि रजनी पर पड़ी थी, वह उससे विवाह करने की इच्छा करने लगा था। उसने उसके विषय में पहले विद्यार्थियों से पूछा, पीछे रजनी के पिता के मित्रों से, और पश्चात् कॉलेज के अन्य प्रोफेसरों से जाँच-पड़ताल करनी आरम्भ कर दी। जब उसकी जाँच का परिणाम संतोषजनक निकला तो वह रजनी की परीक्षा समाप्त होने की प्रतीक्षा करने लगा। परीक्षा समाप्त होते ही वह रमेशचन्द्र सिन्हा से मिलने चल पड़ा।
सिन्हा साहब सायं क्लब जाने का विचार कर रहे थे कि प्रोफेसर आनन्द आ पहुँचे। सिन्हा ने हाथ मिला उनको बिठाया और परिचय पूछा। मिस्टर आनन्द ने बताया, ‘‘मैं लखनऊ मेडिकल कॉलेज में पढ़ाता हूँ। लंदन का एम० डी० हूँ और यहाँ मेडिकल कॉलेज में ‘बैक्टीरिआलॉजी’ पढ़ाने के लिये लगा हुआ हूँ।
‘‘मेरी आयु इस समय सत्ताईस वर्ष की है। मेरे माता-पिता तो अच्छे समृद्धि-सम्पन्न हैं, परन्तु मैं उनसे कुछ भी नहीं ले रहा। उन्होंने मेरी शिक्षा पर बीस हजार रुपया व्यय किया है। वह मैं उनको वापस कर देने वाला हूँ। उसमें से पाँच हजार लौटा भी चुका हूँ।
‘‘अब मैं जीवन में स्थिर हो चुका अनुभव करता हूँ। इस कारण अब विवाह की इच्छा करने लगा हूँ। मैं रजनी से विवाह का इच्छुक हूँ।’’
‘‘तो आपने उससे इस विषय में बातचीत की है?’’
‘‘नहीं; आपसे राय किये बिना उससे बात करना अनुचित मान मैंने आप तक आने का प्रयास किया है।’’
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