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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘इस पर भी उसके विषय में तो कुछ जाना ही होगा?’’
‘‘हाँ। अपने विचार से उसके, आपके तथा आपके परिवार के विषय में कुछ पूछताछ की है और मैं समझता हूँ कि जो कुछ जाना है वह सर्वथा संतोषजनक ही है।’’
‘‘परन्तु मुझको और उसको भी तो आपके विषय में जाँच करने की आवश्यकता होगी?’’
‘‘इसी कारण पहले आपके पास आया हूँ। आप जाँच-पड़ताल कर लीजिये।’’
‘‘आप एक सप्ताह बाद मिलियेगा। मुझको रजनी की इच्छा जानने का समय दीजिये।’’
‘‘ठीक है।’’ इतना कहकर आनन्द ने अपने पिता का पता और अपना लखनऊ का पता छपा हुआ देकर विदा माँगी।
अपनी जाँच-पड़ताल का परिणाम संतोषजनक निकलने पर रमेशचन्द्र ने अपनी पत्नी, लड़के और पुत्रवधू से राय की। उन्होंने भी यूनिवर्सिटी के क्षेत्रों में प्रो० आनन्द के स्वभाव, आचार-विचार के विषय में पूछताछ की।
इन दिनों रजनी इन्द्रनारायण के गाँव में गयी हुई थी। वहाँ राधा और शारदा से मिलकर वह बहुत प्रसन्न हुई थी। शारदा के अब दो सन्तानें हो चुकी थीं। वे दोनों लड़के थे। दोनों बहुत सुन्दर और प्यारे प्रतीत होते थे। बड़ा अब तीन वर्ष का होने जा रहा था। छोटा अभी तीन मास का था। राधा अपने स्वाध्याय और कर्म-काण्ड में रत रहती थी। इस समय उसकी आयु अठारह वर्ष की हो चुकी थी।
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