लोगों की राय

उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


राधा नित्य प्रातःकाल सन्ध्योपासना से निवृत्त होकर रामायण का पाठ किया करती थी। कभी शारदा भी उसके पास आ जाती तो वह ऊँचे-ऊँचे स्वर में उसके अर्थ भी सुनाने लगती थी।

पहले ही दिन रजनी उठी तो राधा को सन्ध्योपासना के उपरान्त आरती गाते सुन, मुँह-हाथ धो उसके पूजा-गृह में जाकर बैठ गयी। शारदा वहाँ पहले बैठी थी।

राधा गा रही थी–

प्रातः स्मरामि खलु तत् सवितुर्वरेण्यं
रूपं हि मण्डल मृचोऽथ तनुर्यजूँषि
सामानि यस्य किरणाः प्रभावादिहेतुं
ब्रह्मा हरात्म लक्ष्यचिन्त्यरूपम्
प्रातर्नयामि तरणिं तनु वाड्मनोभि-
र्ब्रह्मेन्द्र पूर्व कसुरैर्नुत मार्चितम् च
दृष्टि प्रमोचन निनिग्रह हेतु भूतं
त्रेलोक्य पालन परं त्रिगुणात्मकेव

 

दीन दयालु दिवाकर देवा। करे मुनि, मनुज, सरासुर सेवा।।
हित तम करि केहरि कर माली। दहन दोष-दुख दुरति रुजाली।।
कोक-कोक नद लोक प्रकासी। तेज प्रताप रूप रस रासी।।
सारथि पंगु, दिव्य रथ गामी। हरि संकर विधि मूरत स्वामी।।
वेद, पुरान, प्रकट जस जागै। तुलसि वर राम भगति वर माँगै।।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book