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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
राधा का स्वर अति मधुर, उसका उच्चारण अति शुद्ध और गाने का ढंग बहुत ही हृदयग्राही था।
इस आरती के बाद उसने आँखें खोल दीं और रजनी को अपने सामने देखकर मुस्करा दी। उसने पूछ लिया, ‘‘तो रजनी बहन की नींद भी खराब हुई है न?’’
‘‘नहीं राधा! यूँ तो लखनऊ में भी अब प्रातः ही उठने का अभ्यास हो गया है। इन्द्र भैया जब से हमारे घर रहने लगे हैं, प्रातः चार बजे स्नानादि से निवृत्त हो अपना अध्ययन आरम्भ कर देते थे और उनकी देखा-देखी मैं भी उठने लगी हूँ।
‘‘परीक्षा से पहले तो पढ़ने का काम होता था। अब नींद तो खुल जाया करती है, पर यह समझ कि करने को कुछ काम नहीं, बिस्तर पर करवटें ही लेती रहती हूं। यहां तो कल कल ही आयी हूं। आज भी बिस्तर में करवटें ही ले रही थी कि तुम्हारा आरती-गान सुन यहाँ चली आयी हूँ। मैं समझती हूँ कि यह काम कॉलेज की पढ़ाई से कम रोचक नहीं।’’
‘‘सत्य कहती हो दीदी! तो सुनो।’’
राधा अब रामायण का पाठ करने लगी–
लोकोऽब्रवीत तेन कृतं विधात्रा।
त्रयोऽपि लोका विहितं विधानं,
नातिक्रमन्ते वशगा ही तस्य वा रा।।७३९।४२
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