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उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव

प्रीति परां प्राश्यसि तां तथैव,
पुत्रश्च ते प्राप्स्याति यौवराज्यम्।
धात्रा विधानं विहितं तथैव,
न शूरपल्यः परिदेवयन्ति।।


इस प्रकार श्लोक पर श्लोक राधा गाती और उनका अर्थ तथा व्याख्या करती जाती थी।

रजनी तो यह जान कि राम ने बाली को छुपकर मारा था, भारी संशय उत्पन्न हुआ। उसी दिन इन्द्र के पिता से वह पूछे बिना न रह सकी। रामाधार अपने पूर्ण परिवार में, मध्याह्न के भोजनोपरान्त बैठा हा था। रजनी ने प्रातःकाल से मन में उठ रहे संशय का वर्णन कर दिया। उसने कहा, ‘‘काका! राम ने बाली को छल से मारकर एक अच्छा उदाहरण उपस्थित नहीं किया।’’

‘‘क्या मतलब है तुम्हारा?’’ रामाधार ने सतर्क हो पूछ लिया।

रजनी ने अपने कथन की व्याख्या कर दी। उसने कह दिया, ‘‘आज प्रातः राधा राम-कथा कह रही थी। सुग्रीव और बाली का प्रसंग चल रहा था। राम तो भगवान् का अवतार थे। उनको तो छल से विरोधी की हत्या नहीं करनी चाहिये थी।’’

‘‘अवतार का क्या अर्थ समझती हो तुम?’’

‘‘एक परमात्मा है, जो इस पूर्ण चराचर जगत् का कर्ता है। वह सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ और सर्वगुणसम्पन्न है। जब पृथ्वी पर कोई ऐसा दुष्ट उत्पन्न हो जाता है, जिसको हम साधारण मानव परास्त नहीं कर सकते, तो परमात्मा स्वयं इस भूतल पर जन्म लेता है, दुष्ट का संहार करता है। परमात्मा के इस रूप को अवतार कहते हैं।’’

रामाधार हँस पड़ा। हँसकर उसने कहा, ‘‘जनसाधारण को समझने के लिए अवतार का यह वर्णन दिया जाता है। वास्तव में बात इससे भिन्न है। वह बात जनसाधारण समझ नहीं सकते।

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