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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
‘‘मैंने निवेदन किया, ‘मैं एम० डी० हूँ। मैं अन्वेषण करना जानता हूँ। मुझको अपने ढंग पर इस ड्रग की परीक्षा करने की स्वीकृति दीजिये।’’
‘‘प्रिन्सिपल का उत्तर था, ‘यह हस्पताल रिसर्च के लिये नहीं है। मैं आज्ञा देता हूँ कि इस ‘डर्टी ड्रग’ का प्रयोग यहाँ न किया जाए।’
‘‘मैं अभी नौकरी छोड़ना नहीं चाहता। अतः मैंने उस औषधि का प्रयोग बन्द कर दिया। अब मैं अपने प्राइवेट चिकित्सा-कार्य में उसको सफलतापूर्वक प्रयोग कर रहा हूँ।
‘‘रजनी! यह नौकरी एक प्रकार से दासता है। मैं नहीं चाहता कि तुम भी ऐसा करो।’’
‘‘एक बात तो मैं कर सकती हूँ,’’ रजनी ने आग्रह से कह दिया, ‘‘कि मैं निर्धनों की बस्तियों में चली जाया करूँ और वहाँ निःशुल्क और बिना मूल्य लिये चिकित्सा तथा औषधि-वितरण कर आया करूँ।’’
‘‘हाँ, यह तो हो सकता है। इस पर भी मेरा कहना यह है कि स्वाभिमान और सुरक्षा का विचार तो करना ही होगा।’’
‘‘इस विषय में समय-समय पर आपसे सम्मति लिया करूँगी।’’
इस प्रकार निश्चय हो गया कि रजनी निर्धनों का चिकित्सा-कार्य किया करे।
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