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उपन्यास >> पाणिग्रहण पाणिग्रहणगुरुदत्त
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संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव
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रजनी के विवाह पर रामाधार, सौभाग्यवती, राधा, शारदा और रमाकान्त, सब आये थे। इसी अवसर पर इन्द्रनारायण ने यूरोप की यात्रा पर जाना था। ये उसको विदा करने भी आये थे।
जब से शारदा पर विष्णु ने लांछन लगाया था तब से रामाधार के घर से कोई भी शिवदत्त से अथवा उसके परिवार के किसी प्राणी से भेंट करने नहीं आया था। विष्णु की मृत्यु सुनकर भी वहाँ से कोई नहीं आया था। सौभाग्यवती तो मन-ही-मन यह विचार करती थी कि यह किन कर्मों का फल है कि माता-पिता और लड़की में यह दीवार खड़ी हो गयी है। परन्तु वह अपने पति के घर का अपमान सहन न कर सकी थी। विष्णु की मृत्यु का समाचार आने पर, रामाधार ने इन्द्र का पत्र पढ़कर सुनाया तो सौभाग्यवती ने दीर्घ निःश्वास छोड़ चुप रहना ही अच्छा समझा। रामाधार ने अपनी पत्नी से पूछा भी था, ‘‘तुन जाना चाहोगी क्या?’’
‘‘नहीं। चित्त नहीं करता।’’
इस पर भी उसने अपनी मॉँ को पत्र लिखकर शोक प्रकट कर दिया। उसने लिख दिया, ‘‘माँ! तुम जानती हो कि मैं अब तुम्हारी लड़की होते हुए भी तुम्हारे घर नहीं आ सकती। अतः क्षमा करना।’’
पद्मावती ने भी पत्र का उत्तर नहीं दिया। उसने वह पत्र महावीर और साधना को दिखाया तो वे भी दो आँसू बहाकर चुप कर गये। उनके घर में यह समझौता हुआ था कि सौभाग्यवती और रामाधार का नाम घर के पुरखा, शिवदत्त पांडे के सामने नहीं लिया जायेगा।
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