लोगों की राय

उपन्यास >> पाणिग्रहण

पाणिग्रहण

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :651
मुखपृष्ठ : Ebook
पुस्तक क्रमांक : 8566

Like this Hindi book 9 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

संस्कारों से सनातन धर्मानुयायी और शिक्षा-दीक्षा तथा संगत का प्रभाव


इन्द्र का परीक्षा-फल निकला तो उसने एक पत्र द्वारा अपनी मौसी और मामी का धन्यवाद कर दिया। उस पत्र में उसने लिखा,
 ‘‘मैं एम० बी० बी० एस० की परीक्षा में प्रान्त-भर में प्रथम रहा हूँ। मुझको तीन सौ पौंड वार्षिक की छात्रवृत्ति बियाना जाने और आगे पढ़ने के लिये दो वर्ष तक मिलनी स्वीकार हुई है। मैं बियाना जाने के लिए तीन जून को लखनऊ से बॉम्बे मेल में रवाना हूँगा।

‘‘मैं इस सब सफलता और उन्नति में आपकी सहायता और सहानुभूति तथा साथ ही स्नेह का भारी हाथ समझता हूँ। इस पर भी मेरा दुर्भाग्य है कि मैं अपनी कृतज्ञता को प्रकट करने और चरण-स्पर्श कर भावी जीवन के लिये आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु नहीं आ सकता।

‘‘एक दिन मामाजी बाजार में मिले थे। उन्होंने कहा था कि अब हमको घर में नहीं आना चाहिये। वहाँ आने पर अपना अपमान करायेंगे और आपके घर की शान्ति भंग करेंगे।’’

‘‘मुझको विश्वास है कि आप अपने मन से तो आशीर्वाद देंगे ही। आपकी कृपा से मैं शिक्षा के इस अंतिम चरण को भी पूर्ण कर शीघ्र लौट आऊँगा। नानीजी को मेरी चरण-वन्दना देना।

आपका स्नेहकांक्षी
इन्द्र’’


इन्द्र का पत्र मिलने पर उर्मिला ने अपनी सास से कह दिया, ‘‘मैं तो इन्द्र से मिलने के लिये जा रहा हूँ।’’

पद्मा मुख देखती रह गयी। उसकी आँखें डबडबा आई। परन्तु वह वचनबद्ध थी। उसने उर्मिला को मना करना उचित नहीं समझा। इस पर भी उसने उसको सचेत करने के लिये कह दिया, ‘‘महावीर से पूछ लो।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book